वरदान (हास्य-कविता)- नवल किशोर सिंह

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#हास्य कविता
**वरदान**

हिप्पी कट भक्त एक भोला ।  
धारे तन पूजन का चोला ॥ 
किये खूब भगवन की सेवा ।
दूध-मलाई, मिष्टी मेवा ॥

चकमक सिक्के चाँदी वारे ।
सदा नाम हरि ओम  उचारे ॥
मौन तपस्या लीन विधाता ।  
जगती के संकट के ज्ञाता ॥ 

बोले कुछ तो नारद आकर।
चेतन में लौटे करुणाकर ॥
देखें चहुँ जब आँखेँ खोले ।
सिंहासन मन उनका डोले ॥

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खेल चढ़ावे का यह कैसा ।
भक्त नहीं कोई तुम जैसा ॥
भगवन तेरी भक्ति सराहें ।
माँग, तुझे जैसा वर चाहे ॥

मृदुल भाव से हरिजी बोले ।
शब्दों में भी शक्कर घोले ॥
भक्त भीत लख रूप अनूपा ।
अबूझ अनन्त विशद स्वरूपा ॥

पलभर तो प्रसंग को तोला ।
दोनों हाथ जोर तब बोला ॥
बालों से हरि ना भरमायें ।
वर हूँ, वधू एक दिलवायें ॥


-©नवल किशोर सिंह
  

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