*बनारसी साँढ़*(हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय

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संगम सवेरा पत्रिका
साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)



।।बनारसी साँढ़।।
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"बनारस",नगरी बाबा की---मने देवाधिदेव महादेव की।बाबा की इस नगरी में चार चीज बहुते मशहूर है---लस्सी,भाँग,पान अउर साँढ़।
लेकिन बात करब,आज बनारसी साँढ़नक। एह नगरी में साढ़न आ साढ़न क करतब देख बुद्धि हेरा जाला।ए ठईंया बहुते साँढ़ राज राजे लन सन।जेहर देखा बस साँढ़े-साढ़।पुठ्ठा पुष्ट,बाहिन आ जाँघन क मछली एह मतिन,लगे जइसे गरई छिलबिलात ह।शरीर सौष्ठव अइसन कि सारे कामदेव लजाई जास। सारे,तब्बो गइयन के पीछे घूमत-घूमत पहुँच जात हउवैं कब्बो दशासमेध घाट,त कब्बो हरिश्चंद्र घाट,शाम क अड्डा ह बीएचू,विद्दापीठ अउर टेशन,बस हरियरी क खोज में मातल चलत हउवें।
"काम न काज के दुश्मन अनाज के।"
अब काम हईये नाहीं ह त बेचारे साँढ़ करें त का करें,हरियरी त खोजबे न करिहैं।
एह साढ़न क एगो मेठ साढ़ ह---लोग कहेलन "छुट्टा साढ़"।बड़ी शउक से सब साढ़ मिलके छुट्टा साढ़ के आपन प्रधान बनउले हउवें लेकिन रिजल्ट उहै ढाक के तीन पात। आज साँढ़न क मेठ क सभा ह।मंच सजल ह,मंच पर विराजल हउँए मेठ, "छुट्टा साँढ़" अउर "जोगिया साँढ़" अउरो कतने साँढ़ हउँवें गिनती नाहीं ह। 


एक साँढ़ ने दूसरे साँढ़ से पूछा-- भईयवा,कुल कतने साँढ़ हउँवे मंच पर, अउर इ जोगिया साँढ़ क माने का होला। दूसरे ने पहले को झिड़का--चुप करा, गिनतिये आत त हमन साँढ़ होते---रहा बात जोगिया साँढ़ का, त भाई बुझा इ, कि बचपन से किया इ जोगिअइ, लेकिन रहा साँढ़ का साँढ़,एकदम्मे चाँड़ साँढ़।छुट्टा साँढ़ का भाषण शुरु हुआ और बदस्तूर जारी रहा,तभी एक साँढ़ ने दूसरे से कहा--अरे भाई साँढ़, एक बात बतावा,अग्गर इ छुट्टा साँढ़, जित्ता तेजी से, मुँह से शबद छोड़ रहा है,उत्तै तेजी से, मुँह से भुसा अउर चोकर छोड़ता, त कब्बो हम साँढ़न के नाद खाली न रहता---खाली हम्मन क पोशे क हाल जानैला इ छुट्टा अउर जोगिया, चारा क व्यवस्था ह कि नाहीं कउनो मतबले नाहीं---जा रे साँढ़ अउर साँढ़ के जात-- तभी बाबा का जयकारा लगा--हरअ---हरअ---महाआआ__देवअअ। साँढ़ सभा सावधान हो गई। छुट्टा साँढ़ ने कहा--मेरे प्यारे साँढ़ भाईयों और गाय बहनों---बोलो,चारा मिला कि नहीं मिला--चोकर मिला कि नहीं मिला---पूरी साँढ़ सभा ने कह डाला--चारा मिला कि नहीं मिला---चोकर मिला की नहीं मिला---छुट्टा साँढ़ भौचक रह गया कि सभा मेरी बातों को रिपीट क्यों कर रही है---छुट्टा साँढ़ ने सभा से पूछा--मेरे प्यारे साँढ़ भाईयों ये मेरी बातों का रिपीटेशन क्यों कर रहे हो?
बसहा साँढ़ अपनी बाहों की गरई फड़काता हुआ बोला---गुरु,तू जे हम्मन के कहबा उहै न कहब जा---मतबल चारा मिला की नहीं मिला----इ रिपीटेशन थोड़े ही है गुरु, इ तू जउन बात हम्मन के मुहँ में ठूँसले हउवा न,उहै ईको होत बा।बसहा साँढ़ ने अपना खूर जमीन पर रगड़ते हुए कहा---गुरु एक बात बतावा, इ साँढ़ बिरादरी कब तक बेरोजगारी क पीड़ा झेलिहैं---चारा के खोज में घूमत-घूमत पूरा गोड़ अउर देह पिरात हउवे---चारा क खोज में कब्बो सिगरा---कब्बो लहुराबीर---कब्बो लहरतारा। कब्बो, कुछ्छो करबो करबा कि बस भासने देबा--अब देखा गुरु,हम साँढ़न के नाऊँ पर जवन खेत एलाट कईले हउवा,उहाँ त गदहा सभ चरत हउँन स,अब इ बतावा,तू साँढ़ हउआ, इ साँढ़न के जात क बारे में तू नाहीं सोचबा त के सोची। छूट्टा ने जोगिया साँढ़ की ओर देखा।जोगिया साँढ़ ने कहा---मेरे साँढ़ भाईयों,मैनैं साँढ़ समाज की भलाई के गौशाला, साँढ़-शाला खुलवाई है,जहाँ हमने साँढ़ भाई और गाय बहनों के रहने का इंतजाम कर रखा है---हमने साँढ़ भाईयों के लिए खेत उपलब्ध करा रखा है, जहाँ साँढ़ो के लिए हरे-हरे घास उपलब्ध हैं---मेरे साँढ़ भाईयों,इस साँढ़ सरकार ने पूरे साँढ़ समाज के लिए एक से बढ़कर कार्य किया हैं,अब इस साँढ़ सरकार ने यह निर्णय किया है, साँढ़ समाज की बेरोजगारी दूर करने के लिए एक से बढ़कर एक योजना बनाई जायेंगी ----इस वित्त वर्षीय योजना में, हम सभी साँढ़ो को एक-एक पोल्ट्री फार्म देने का आश्वासन देते हैं---बसहा साँढ़ अपने पुष्ट पुठ्ठों की गरई फड़काते हुए खड़ा हुआ और बोला---ए छोटा सँढ़-मेठ,हम्मन के इ बतावा--गऊभगत बनके, इ तू जवन साँढ़शाला खोलले हउआ,हुआँ रोजै साँढ़ आ गाय मरत हैं---ना चारा का बेवस्था, ना चोकर का अउर नहियें घास का---सब चारा त सँढ़शाला क देख-भाल करेवाला चर जात हँउए---रहल बात साढ़न के बास्ते, हरियर घास से भरल खेतन की,त हुँआ त बइसाख नंदन लोगन का कब्ज़ा है---उ खेतन में मजाल, कि एक्को साँढ़ हेल जाए---सब गदहा एकवट के अईसा दुल्लत्ती झाड़ता है कि पूछो मत---कतने साँढ़ भाई लोग कोशिश किया, लेकिन घवाहिल होके लउट आए---दोबारा जाने का साहस नहीं जुटा पाए---सब गदहा कहता है,इ खेत जोगिया साँढ़ ने हम गदहन के नाम एलाट किया है---ए छोटका सँढ़मेठ,हुँआ कुछ अउर, हिआँ कुछ अउर---इ कउन गेम है हम साँढ़ समाज क साथ में? एक बात अउर,इ साँढ़ समाज--पोलटरी फारम का, का करेगा? इ मुर्गा समाज के बीच में साँढ़न के कउन काम है जी?तोहार सब नीति-कुनीति हम साँढ़न क समझ में आई रहा है---इ साँढ़ सरकार, मुर्गा विकास के लिए, हम साँढ़ समाज का ईस्तेमाल कर रहा है---करते रहो कूकड़ू कूँ। ए छूट्टा साँढ़ अउर जोगिया साँढ़,एगो बात बूझ लिहा---हम त चारा खोज में--सिगरा, लहुराबीर, लहरतारा में मगजमारी करबे करेंगे---लेकिन इहो बूझ लिहा कि इ बसहा साँढ़ तूहों सब के सिगरा आ लहतारा का घुमाई न करवा दिया, त एक साँढ़ का औउलाद नहीं---बसहा साँढ़ नाम है मेरा---ठेठ बनारसी हैं।बसहा साँढ़ के ईशारे पर सभी साढ़, साँढ़ सभा छोड़ गए।छूट्टा साँढ़ अउर जोगिया साँढ़ जुगत भिड़ा रहे हैं कि साँढ़ समाज को कैसे मैनेज किया जाए----चुनाव नजदीक है।
बचवा,हम तो इहै कहब---
"बैला क कमाई पर भईंसिया काटे तानी।"

यह कथा किसी की भी भावना को आहत करने के लिए नहीं लिखी गई है।व्यंग्य है,व्यंग्य को व्यंग्य की तरह लें और थोड़ी देर चिंतामुक्त होकर आनंद की प्राप्ति करें।
शुभ रात्री
🙏🏼😂घनश्याम सहाय उर्फ साँढ़ बनारसी😂🙏🏼

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