कारगिल विजय दिवस (कविता)- पं रामजस त्रिपाठी नारायण

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★कारगिल विजय दिवस★

(*कारगिल विजय दिवस  26 जुलाई 1999*
विधा-लावणी छंद)


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छद्म वेश में घुसे भेड़िये, द्रास बटालिक सेक्टर में।
लेह मार्ग को रोक दिये थे, सियाचीन के चक्कर में।।
अपनी वे फितरत ना छोड़े, खंजर घोपे अंदर में।
बार -बार वे मुँह की खाया, लाज न उनको अंतर में।।

मिली सूचना चरवाहे से, दुश्मन ऊपर आया है।
अनवांक्षित है हरकत उसका, अपना पैर जमाया है।।
झटपट ही तैयार हुआ था, दस्ता वीर जवानों का।
मातृभूमि के प्रेमी सैनिक, लौ आतुर परवानों का।।

ऊँचे पर्वत राह कठिन थे, खोजी बन कर जाना था।
कभी नहीं जो जाकर लौटे, केशरिया सा बाना था।।
खबर हुई तब मुख्यालय को, हलचल संसद अंदर में।
वीर बाँकुरे किए चढ़ाई, चूहा दुबका बंकर में।।

घमासान सा मचा हुआ था, दुश्मन ऊपर नीचे हम।
जूझ रहे थे वीर बाँकुरे, बरस रहे थे गोले बम।।
वायुयान गोले बरसाये, सैनिक मन हर्षाया था।
लगी गरजने तोपें अपनीें , बैरी तब घबराया था।।

अरि का शीश काटने निकले, माँ के बेटे वीर अमर।
ललनाओं ने आँस पोछ ली, वीर बाँकुरे कसे कमर।।
टूट पड़े वे पंचानन -से, गुत्थम- गुत्था युद्ध किए।
रणचंडी रण विचरण करती, भैरव बाबा क्रुद्ध हुए।।

ट्रीगर हिल पर ध्वज लहराये, जय हो बाबा बर्फानी।
उदित किए पुरुषार्थ बाँकुरे, दुश्मन माँगे तब पानी।।
भाग रहे थे कायर कपटी, छोड़ -छाड़ शव साथी का।
नीयत उनका साफ नहीं था, काम नहीं था माफी का।।

विजय मिली थी भारत को अब, घर-घर में खुशहाली थी।
मुँह की खाकर बैरी लौटा , उसके घर बदहाली थी।।
अमर सपूतों की धरती पर, झंडा केशरिया धानी।
वीर बाकुरें हँसते -हँसते, हुए मातु हित बलिदानी।।

सहस अठारह फिट चोटी पर, भिड़े बिहारी वनवारी।
शौर्य दिखाकर शौर्य कमाया, परम वीर मेडल न्यारी।।
कीर्ति चक्र ने कीर्ति बढ़ायी, सैनिक मिलकर हर्षाये।
वीर चक्र उरु चक्र-अशोका, चमन धरा को चमकाये।।

नमन करें हम अमर शहादत, विजय दिवस को याद करें।
मातृभूमि हित अमर हुए जो, उन परिजन को याद करें।।
सैनिक जीवन एक तपस्या, मिलकर हम सम्मान करें।
वीरोचित गाथा को गाकर, अपने में अभिमान भरें।।

जय हिंंद! जय भारत!
जय जवान!जय विज्ञान!
नारायण !नारायण! नारायण!



-© पं रामजस त्रिपाठी नारायण


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