बचपन की सीख (आलेख)- प्रेम बजाज

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बचपन की सीख …

… कहते हैं जो बचपन में सीखा हो वो उम्र भर याद रहता है , ठीक ही तो है , जो संस्कार हम बचपन में बच्चों को देते हैं , वहीं तो बच्चे बड़े हो कर वैसा ही रूप हमें दिखाते हैं । 

बच्चों की शिकायत करने से पहले हमें ये देखना है कि हम बच्चों को किस तरह की परवरिश दे रहे हैं , क्या हम बच्चों को सही परवरिश दे रहे हैं  या हम अपनी  मशरूफियत में   इतने खो  गए हैं कि बच्चों  की तरफ़ से लापरवाह हो गए हैं । यदि कम ऊम्र में बच्चों में अच्छी आदतें डाली जाएं तो आने वाला कल उनका हम बेहतर  बना सकते हैं ।   आज हर मां- बाप  अपने बच्चे को सर्वगुण संपन्न देखना चाहता है , इसलिए कंपीटिशन बहुत बढ़ गया है , स्कूलो में भी  कंपीटिशन बहुत हो गया है , मासूम है बच्चों पर अपनी उम्र से ज्यादा बोझ डाल दिया गया है । इसलिए  हर मां - बाप को चाहिए कि बच्चों हर काम के साथ तालमेल बैठाना सिखाए ।

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  सबसे पहले बच्चों को समय की अहमियत सिखाए , बच्चों को अपना काम समय पर करने की आदत हो । अपने साथ- साथ दूसरों के समय की  भी इज्जत करना सिखाएं । कुछ मां- बाप  बच्चे का स्कूल का काम ( होमवर्क ) खुद करते हैं , ताकि बच्चा आराम करें वर्ना वो तक जाएगा , अगर अभी से उसे किया हुआ सब मिलेगा तो उसे मेहनत की आदत कभी नहीं पड़ेगी , उसे शुरू से हुई मेहनत की आदत डालें ।

अपनी चीजों की देखरेख करना सिखाएं, उनकी साफ़-सफ़ाई रखना सिखाएं , अपना स्कूल बैग , अपने  जूते , मौज़े , खिलौने इत्यादि को साफ रखना , सम्भाल कर रखना सीखने से बच्चे में व्यक्तित्व का विकास होता है ।

अक्सर बच्चे रात को देर तक टी. वी. या मोबाइल पर गेम खेलते रहते हैं और सुबह जल्दी नहीं उठ पाते , जिससे स्कूल के लेट हो जाते हैं , मां- बाप बच्चों को आनन- फानन में तैयार करके , कभी खाएं और कभी बिन खाएं स्कूल भेज देते हैं । जिससे बच्चा अपने आप को उर्जावान नहीं महसूस करता । बच्चों को सुबह जल्दी उठने की आदत बनाएं , जल्दी उठ कर सभी काम जल्दी और आसानी से हो जाते हैं ।

बच्चों को बाहर जाकर दूसरे बच्चों के साथ खेलने की आदत डालें , इससे बच्चे का शारिरिक और मानसिक विकास होगा । आजकल छोटे परिवार होने की वजह से बच्चों के पास ढेर सारे खिलौने उपलब्ध होतै है और उन पर उसी का आधिपत्य होता है । जब वो अन्य बच्चों के साथ खेलेगा तो उसे मिलजुल कर रहना आएगा  अर्थात उसे टीमवर्क की आदत पड़ेगी , अपनी चीज़ें शेयर  करने अर्थात मिल कर रहना , अनुशासित भी रहेगा । और इस तरह से वो दूसरों की मदद करना भी सीखा जाएगा  । वो भी दूसरे बच्चों से कुछ ना कुछ सीख जाएगा , वर्ना  कुछ बच्चे या कुछ लोग ऐसे होते हैं कि  उन्हें अगर कोई सलाह दे तो उन्हें अच्छा नहीं लगता । बच्चों के साथ बच्चे खेल-खेल में बहुत कुछ सीखते हैं , और इस तरह उनका प्रदर्शन और भी अच्छा होगा  , बच्चे में सहयोग की भावना बढ़ेगी । बच्चा सबके साथ खेलते हुए धैर्यवान भी बनता है ।

कुछ लोग या कुछ बच्चे इसलिए किसी काम को हाथ में नहीं लेते क्योंकि उनके मन में असफल होने का डर रहता है । अगर बच्चा किसी काम में असफल हो जाता है तो उसे डा़टे या मारे नहीं , ना ही हतोत्साहित ना करें , उसे  उस काम के प्रति उत्साहित करें , उसे फिर से करने को कहें । उसे  समझाए कि पूरी तरह से दिल लगा कर काम करे ‌, इस तरह वो अगली बार सफल हो सकता है , फिर उसे उससे और ज्यादा करने को कहें ‌ । इस आगे चल कर उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता ।

यदि बच्चों को कम उम्र में ही अच्छे संस्कार दिए जाएं, अच्छी बातें सिखाई जाएं, अच्छी आदतें डाली जाएं तो उन्हें आगे बढ़ने से  और सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।


-©प्रेम बजाज , जगाधरी (यमुनानगर ) 



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