भारत युद्ध नहीं बुद्ध देता है (हास्य-व्यंग्य)-श्री घनश्याम सहाय

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★"भारत युद्ध नहीं बुद्ध देता है"★



मित्र!
"भारत युद्ध नहीं बुद्ध देता है"
और फिर प्रधान मित्र ने अपनी पूरी बौद्धिकता अपने अमेरिकन मित्र के सामने झाड़ डाली। महात्मा बुद्ध के जन्म से लेकर बुद्ध के महानिर्वाण तक की सम्पूर्ण व्याख्या कर डाली। बौद्ध धर्म के हीनयान, थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान की व्याख्या भी कर डाली। प्रधान मित्र ने अपने अमेरिकन मित्र को बुद्धिज्म् के विषय में वह हर कुछ बताया जो जानते थे। मित्र ने मित्र को बताते हुए कहा----------------
मित्र, बुद्ध ने कहा था--जो मनुष्य दुख से पीड़ित है उनके पास बहुत सारा हिस्सा ऐसे दुखों का है, जिन्हें मनुष्य ने अपने अज्ञान, गलत ज्ञान या मिथ्या दृष्टियों से पैदा कर लिया है। उन दुखों का निराकरण सही ज्ञान के द्वारा ही किया जा सकता है। बुद्ध ने समाज को मध्यम मार्ग अपनाने को कहा,बुद्ध ने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया।बुद्ध ने समाज को अहिंसा पाठ पढ़ाया।
मित्र ने अपने अमेरिकी मित्र को कहा--मित्र, दुनिया की 65% बौद्ध आबादी चीन में रहती है फिर भी चीन बुद्ध की नहीं युद्ध की बात करता है। मित्र,यदि चीन ने बुद्ध को छोड़ युद्ध की बात की तो मेरा देश बुद्ध को छोड़ श्रीकृष्ण के उपदेश का पालन करेगा---
हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्
तस्मात् उतिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।

मित्र, यहाँ कृष्ण ने अर्जुन को कहा, हे कौन्तेय उठो युद्ध करो। यदि युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा, यदि जीत गए तो धरती का सुख भोगोगे।
मित्र, पहले हम बुद्ध की बात करते हैं फिर युद्ध की। मित्र, हम बुद्ध और अहिंसा की बात करते हैं। विश्व को शाँति का पाठ पढ़ाने वाला बौद्ध धर्म ही है। धन्य हैं भारत की धरती जहाँ भगवान बुद्ध ने जन्म लिया।
अनायास ही अमेरिकी मित्र ने अपने भारतीय मित्र से बुद्ध की माँग कर डाली:-
फ्रेंड, एक बुड्ड अमेरिका को भी डे डो---हो साके टो पूड़ा वल्ड को डो टाकि पूड़ा वल्ड में शाँटी हो।

प्रधान मित्र: मित्र, बुद्ध तो एक ही हैं और 483 ईसा पूर्व में उनका महानिर्वाण हो चुका है। कोई लामा चलेगा?
लेकिन अमेरिकी मित्र ने बुद्ध या बुद्ध पुत्र से कम पर राजी नहीं हुआ।

प्रधान मित्र ने बहुत सोच-विचार किया, बहुत युक्तियाँ भिड़ाई किन्तु हल निकलता नहीं दिख रहा था। प्रधान मित्र की जुमलेबाजी की कला ने भी हथियार डाल दिए। अचानक प्रधान मित्र के दिमाग में एक नाम तेजी से कौंधा--मोटा भाई, हाँ मोटा भाई इसका हल निकाल सकता है--आखिर हथियारों की बात थी। प्रधान मित्र ने मोटा भाई को बुलाया सारी बात बताई---मोटा भाई ने बड़ी मधुर मुस्कान छोड़ी और कहा--मोटा भाई, जब हम जटिल से जटिल समस्याओं का हल ढूँढ सकते हैं तो ये कौन सी बड़ी समस्या है। आपके अमेरिकी मित्र को क्या पता बुद्ध कौन है?बुद्ध के बेटे का नाम क्या है? वह तो हम जानते हैं न।
आपके मित्र को बुद्ध या बुद्ध का बेटा ही चाहिए न। बुद्ध तो नहीं, बुद्ध का बेटा हम जरूर दे सकते हैं। बताओ मोटा भाई, बुद्ध के बेटे का नाम क्या है?
प्रधान मित्र--राहुल।

मोटा भाई--बस हो गया समाधान। हम आपके मित्र को राहुल को यह कहकर सौंप देंगे कि यही बुद्ध का बेटा है। यदि आपका अमेरिकी मित्र इतिहास के पन्ने भी पलटेगा तो वहाँ भी बुद्ध के बेटे का नाम राहुल ही मिलेगा--चिंता की कोई बात नहीं। आप हथियारों और राफेल की डील फाईनल करो।

प्रधान मित्र--लेकिन राफेल की डील तो फ्रांस से होनी है।

मोटा भाई--तो क्या हुआ, आपका अमेरिकी मित्र चाहेगा तो फ्रांस मना नहीं कर पाएगा।
प्रधान मित्र और मोटा भाई की बात अमेरिकी मित्र समझ तो नहीं पा रहे थे किन्तु यह जरूर समझ पा रहे थे कि बात अमेरिकी हित की ही हो रही है।

फिर सुरक्षा सलाहकार की निगरानी में आधुनिक बुद्ध पुत्र राहुल लाए गए और प्रधान मित्र और मोटा भाई ने यह कहकर अपने अमेरिकी मित्र को सौंपा कि यही बुद्ध पुत्र राहुल हैं, आलू से सोना बनाने की कला में काफी दक्ष हैं। अमेरिकी मित्र काफी प्रसन्न हुए, बड़ी श्रद्धा से बुद्ध पुत्र राहुल को ग्रहण किया।

राहुल की मेधा को परखने के लिए अमेरिकी मित्र ने बुद्ध पुत्र राहुल से एक सवाल पूछा--बच्चे ये बटाओ--कोविड-19 में 39-टामीलियन मारटा हाय टो पूड़ा डेश में किटना मारा।

बुद्ध पुत्र राहुल ने अपना सर खुजाया और
सवाल का सवाल बना दिया,पूछा--चचा,39-तमिलियन में कितना मिलियन होता है?

अमेरिकी मित्र बहुत खुश और कहा--अम्मेड़िका टो ये चलेडा--क्वेश्चन से क्वेश्चन बानाटा हाय, ब्यूटीफुल, अम्मेड़िका को ऐसा ही इन्टेलिजेंठ मैन माँगटा हाय।ब्युटीफुल--ब्युटीफुल।

हथियारों की डील फाईनल हुई----बाकी किसको कितना और क्या मिला मैं नहीं जानता---ये रहस्य बुद्ध पुत्र राहुल ही बता सकते हैं ।

प्रधान मित्र और मोटा भाई ने बुद्ध पुत्र राहुल को अमेरिका को सौंप दिया--अब युद्ध होगा या बुद्घ , ये कोई नहीं जानता।

(व्यंग को व्यंग की तरह लें ,गंभीरता से नहीं।
यह बस कपोल कल्पना है, यथार्थ नहीं।)
-©घनश्याम सहाय

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