तुम बड़े वो हो (हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय

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तुम बड़े वो हो
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"तुम न बड़े वो---हो"। यह जुमला लगभग हर पत्नी अपने पति को कहती है किन्तु कितने ही पति आज तक इस "वो" का अर्थ ढूँढने को प्रयासरत है---लेकिन आजतक असफल रहे।कई बार कुछ पतियों ने इस "वो" का अर्थ अपने पत्नियों से जानने की कोशिश की किन्तु असफल रहे, पत्नियों से एक ही जबाब मिलता-----
" धत्! हटो जाओ,आप बड़े "वो" हो।"
कहतें हैं औरतों के पेट में बात नहीं पचती किन्तु इस "वो" को इस तरह पचाया है कि औरतों को युधिष्ठिर द्वारा दिया गया शाप भी फेल है।



बस अभी-अभी वह आफिस से घर लौटा है, आफिस में काम का लोड और उपर से बास की डाँट---बेचारा काफी थक गया था।फ्रेस हुआ आकर सोफे पर फैल आफिस की थकान उतारने लगा। मंदाकिनी आई और आकर लिपट गई---अब यह उसका स्नेह था या वह अपना श्रृंगार दिखाना चाह रही है,समझ नहीं पाया वह। मंदाकिनी ने पूछा--बेबी,कैसी लग रही हूँ?
मदमाती मंदाकिनी ठाढ़ किये सिंगार।
मूढ़़ मति घनश्याम का हृदय हुआ अंगार।।
"बेबी कैसी लग रही हूँ" के साथ बास द्वारा दी गई गालियाँ दिमाग में गूँजने लगीं---लेकिन उसने बस इतना कहा--अच्छी लग रही हो। उसके दिमाग में एक पुराना दोहा जाग उठा-----
नाहर के नख में बसे दंते बसे भुजंग।
बीछी के पोंछी बसे नारी के सब अंग।।
प्रश्न उठता है,क्या बसता है--तो उत्तर है " विष"।
सिहर उठा वह यह सोचकर "नारी के सब अंग"।
उसने कहा बहुत अच्छी लग रही हो एकदम हिरोइन की तरह---अचानक पत्नी लाड़ से उससे फिर लिपट गई--उसे अभी पत्नी का लिपटना बिलकुल ही अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन आग में घी कौन डाले,उसे सुबह की पड़ी झाड़ याद आ गयी जब आफिस जाते वक्त उसकी भैरवी(चामुंडा) ने उसे राग भैरव (घोर विनाश करने वाल) सुना डाला था।वैसे राग भैरव बहुत ही मधुर राग है किन्तु जब क्रोधातुर भैरवी के मुख-श्री से विस्तृत आयाम लिए निकलता है तो समस्त वायुमंडल प्रचंड स्वर प्रवाह से आंदोलित हो उठता है।
उसने अनायास ही कह डाला---
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं,लिपटे रहत भुजंग।।
उसकी चामुंडा दूर हटी,और कहा--क्या कहा, जरा फिर से कहो तो----घबरा गया वह और घबराहट में बोल उठा---देखो मंदाकिनी, मेरी भैरवी जरा सुनो तो---देखो,तुम हो चंदन और मैं हूँ भुजंग---इस दोहे में रहीम कवि कहते हैं--चंदन सुंगध देना नहीं छोड़ता चाहे कितने ही विषधर उसमें क्यों न लिपटे हों और तुम तो मेरी चंदन हो मेरी चाँदनी---शर्माती हुई पत्नी फट्ट से बोल उठी----
"धत्,तुम बड़े "वो"--हो"। दिमाग भन्ना उठा उसका, फिर वही "वो"। जिस "वो" का अर्थ आदिदेव न ढूँढ पाये, वह इस "वो" का अर्थ क्या ढूँढ पाएगा। "वो" हथौड़े की तरह उसके दिमाग पर चोट मारे जा रहा है।
अचानक पत्नी बोल उठी--
"बेबी,अब तुम पहले जैसे नहीं रहे",पति रूपी बेबी ने सोचा,कहाँ से रहुँगा पहले जैसा, टोक-टोक कर तो सारी ओरिजिनालटी खुरच दिया है,अब कैसे पहले जैसा खोजती है मेरी चामुंडा, बस सोच कर ही रह गया,कहा नहीं क्योंकिं कहने का परिणाम जानता था वह।
पत्नी ने कहा--बहुत थक गए हो,चाय लाती हूँ।अब यह मेरा उसको हिरोइन कहने का परिणाम था या-----
पत्नी चाय लेकर आ गई लेकिन बिस्किट किचन में ही छोड़ आई।बिस्किट न लाने पर पति को देख बोली--
"बेबी, मैं भी कितनी स्टुपिड हूँ न", देखो न बिस्किट किचन में छोड़ आई।उसकी साँस गले में अटक गयी,पत्नी की स्टुपिडिटी पर "हाँ" कहना खतरे से खाली नहीं था।आजतक किसी शौहर की इतनी मजाल नहीं हुई कि बीबी की स्टुपिडिटी पर कोई टिप्पणी कर सके।
उसने चाय पी और अपनी ही मस्ती में निकल पड़ा एक अंजान मंजिल की ओर, कुछ दूर जाने के बाद उसके साथ एक कुत्ता हो लिया। उसे लगा शायद यह स्वर्गारोहण के समय, युधिष्ठिर के साथ वाला कुत्ता है। कुछ देर बाद उसने कुत्ते से पूछा-
हे श्वान श्रेष्ठ,क्या आप भी अपनी भैरवी से त्रस्त हो सन्यासी होने जा रहे हो?
कुत्ते ने कहा--नहीं नर श्रेष्ठ, ऐसा नहीं है, हाँ यह सत्य है कि मेरी कुतिया ने आज बहुत भौंका है लेकिन वह बस भौंकती है काटती नहीं-- कुतिया है, मनुष्य नहीं है---कुछ देर भौंकेगी फिर शाँत हो जाएगी और मैं वापिस लौट जाऊँगा। लेकिन तुम मनुष्यों में------
वह बोल पड़ा---मनुष्यों में क्या श्वान श्रेष्ठ?
कुत्ता--देखो नर श्रेष्ठ, मनुष्यों में नारियाँ बड़ी रहस्यमयी होती हैं। मनुष्यों में तो ऐसे कई उदाहरण है जिसमें स्त्रियों के रहस्मयी आचरण ने कई क्राँतियाँ और युद्ध करवा दिए।
उसने कुत्ते को रोका और पूछा-ये कैसे श्वान श्रेष्ठ?
कुत्ते ने कहा--रूस की क्राँति के बारे में तो सुना होगा---रूस की क्राँति के लिए 'जार' को जिम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन तथ्य कुछ और है--मेरी समझ से रूसी क्राँति के लिए मुख्य रूप से जार की पत्नी जिम्मेदार है।जार दिवाना था जारीना का जितना कहती बस उतना ही करता जार---बस हो गई क्राँति। फ्रांस,फ्रांस की क्राँति के लिए मुख्य रूप से लुईस-16 की पत्नी मारिया एन्टोइनेट जिम्मेदार थी जो परोक्ष रूप से फ्राँस की सत्ता का बागडोर एन्टोइनेट संभालती थी--हो गई फ्रांसीसी क्राँति--और जाने ऐसे कितने ही उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं---मसलन महाभारत युद्ध, राम-रावण युद्ध वगैरह, वगैरह।
वह नतमस्तक हो गया कुत्ते के आगे---कितना विद्वान है यह श्वान---मनुष्य का ज्ञान भी इसके ज्ञान के आगे फीका है।
उसने कहा बस मेरी एक शंका का समाधान कर दो श्वान श्रेष्ठ--"आप बड़े "वो" हैं" में "वो" का अर्थ क्या है? कुत्ते ने प्रश्न को बड़े ध्यान से सुना, लेकिन श्वान श्रेष्ठ रूके नहीं, बड़ी तीव्र गति से नौ-दो-ग्यारह हो गए।शायद श्वान श्रेष्ठ को भी "बड़े वो हैं" के "वो" के अर्थ की तलाश है। शायद श्वान श्रेष्ठ की भी अर्धांगिनी उन्हें कहती होगी--
धत्,आप बड़े"वो"हैं।
मदमाती मंदाकिनी मंद-मंद मुस्कात।
'वो'अर्थ बड़ा गूढ़ है,रोज करै उत्पात।।
अंत में कहना है--
कपूर खईला से कउवा उजर ना हो जईहें।
पत्नियों पर आक्षेप लगाकर पति अपनी कमियाँ नहीं छुपा सकता, समझे न,सावधान।
जय हो बैशाखनंदन, जय हो।


-©घनश्याम सहाय

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