मनहरण घनाक्षरी : छंद विधान
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मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी कवित्त परिवार का एक वर्ण वृत्त है, जो अपने लालित्य से मंचीय काव्य आयोजनों में श्रोताओं का मन मोह लेता है। घनाक्षरी के कई प्रकार है। उन सब में मनहरण घनाक्षरी को सिरमौर माना जाता है।
विधान :-
मनहरण घनाक्षरी (वर्णिक छंद )
चार चरण, प्रति चरण 31 वर्ण , 8,8,8,7 वर्ण पर यति। अंत में एक गुरु अनिवार्य। चारों चरण समतुकांत। आधे वर्ण की गिनती नहीं होती है।
विशेष :- 1. कुछ आचार्यो का मत है कि चरणांत लघु-गुरु रखने से लय उत्तम बनती है। यह उचित है, लेकिन ऐसा करना विधान के अनुसार अनिवार्य नहीं है।
2. आंतरिक यति को भी परस्पर सम तुकांत रखने से घनाक्षरी के लालित्य में अभिवृद्धि होती है। किंतु यह अनिवार्य नहीं है। हालाँकि जितनी अधिक तुकांतता होगी, जितने अधिक प्रास होंगे, घनाक्षरी का लालित्य उतना अधिक निखरेगा।
इसे समझने के लिए कवि मियाँ वाहिद अली का एक घनाक्षरी देखें -
सुंदर सुजान पर, मंद मुसकान पर,
बाँसुरी की तान पर, ठौरन ठगी रहै।
मूरति बिसाल पर, कंचन की माल पर,
खंजन सी चाल पर, खौरन खगी रहै।।
भौहे धनु मैन पर, लोने युग नैन पर,
शुद्ध रस बैन पर, 'वाहिद' पगी रहै।
चंचल से तन पर, साँवरे बदन पर,
नंद के नंदन पर, लगन लगी रहै।।
3. शेष किसी भी पद में लघु-गुरु का कोई नियम नहीं है। आप वर्णिक गणना के अनुसार शब्दों का संयोजन कर सकते हैं। **ध्यान यह रहे कि गति और लय कहीं बाधित न हो। क्योंकि यही घनाक्षरी की आत्मा है।**
4. लय साधने के लिए प्रयुक्त पद-क्रम (विभक्ति सहित शब्द) सम रखने का प्रयत्न करें।
जैसे -
रैन दिन आठो याम, राम राम राम राम,
सीताराम सीताराम, सीताराम कहिए।
इसके सभी शब्द दो-दो वर्णों का यानी सम है।
उपरोक्त उदाहरण में
चंचल से तन पर - में 'चंचल से' -विभक्ति सहित चार वर्ण अतः सम है।
विषम-विषम मिलकर भी सम बन जाता है। जैसे - सुंदर(3वर्ण ) सुजान (3वर्ण ) पर(2वर्ण )। इसमें 'सुंदर सुजान' मिलकर सम हो जा रहा है।
5. ध्यातव्य 👉 8-8 वर्णों के खंडों में
‘सभी सम पद’ उत्तम,
‘विषम-विषम-सम पद’ उत्तम,
‘सम-विषम-विषम पद’ पचनीय,
‘विषम-सम-विषम पद’ वर्जित होता है।
-नवल किशोर सिंह
30.08.2022
घनाक्षरी छंद को बहुत बारीकी से स्पष्ट किया आपने ।बहुत धन्यवाद।🙏🙏
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