मुक्तक (कविता)- विनोद वर्मा दुर्गेश

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# मुक्तक#

याद फिर वही गुजरा जमाना आ गया

ले कर वो दिल का नजराना आ गया। 

हमने भी चाहतों का गलीचा बिछाया

बरसों बाद फिर हमें गुनगुनाना आ गया। 


lonely

सजना संवारना अब उसके भा गया

लबों को उसके मुस्कुराता आ गया। 

हम उसके हुस्न ए दीदार के सदके

नजाकत पे फिका परवाना आ गया। 


वो रूखसत हुए थे तनहा इश्के सफर

बोझिल सी हुई थी अपनी भी डगर। 

अब तो हरसुं चाहतों के मेले लगे हैं 

रोशन हुआ है ये मुफलिसी का नगर।


vvd

-विनोद वर्मा 'दुर्गेश', तोशाम 

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