ग़ज़ल - श्री अजय प्रसाद

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# ग़ज़ल#

साहित्य,शाईरी,या सुखनवरी कमाने नहीं देतीं
शेर,गज़लें,कविताएं किसी को दाने नहीं देतीं ।

भुखमरी के शिकार हुए कई बड़े साहित्यकार 
तालियाँ और तारीफें चार पैसे बनाने नहीं देतीं ।

क्यों मैं करुँ मेहनत खामखा इल्मे अरूज़ पे 
जब मेरी गजलें मुझे गृहस्थी चलाने नहीं देतीं ।


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हाँ चंद चाटुकार अदीबों की बात मैं नहीं करता 
उनकीं हसरतें उन्हें हक़ीक़त बताने नहीं देतीं ।

फिल्मी गीतकारों की बात ही कुछ और है यारों 
मगर वहाँ भी इमानदारी पैर जमाने नहीं देतीं ।

क्या तुम अजय फ़ालतू की बातें लेकर बैठे हो 
कौन सी है जिम्मेदारी,ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं ।


अजय प्रसाद

-©अजय प्रसाद 

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