कश्मीर को गाने निकली हूँ (कविता)- रेणु शर्मा

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# कश्मीर को गाने निकली हूँ#


kashmir

हिंद देश का प्यारा ,
कश्मीर तो हमारा है।।
आज दुश्मन के सीने से लहू निकाल,
कश्मीर को लिखने निकली हूं ।।
कश्मीर को गाने निकली हूं।।

घाटी - घाटी पर सैनिक टुकड़ी है,
दुश्मन का पहरा तगड़ा है।।
तोड़ शत्रु का अहम,,
मातृभूमि को खुश करने निकली हूं।।
कश्मीर को गाने निकली हूं ।।

कश्मीर की घाटी कहती है ,,
दुश्मन पर भारी वार करो।।
छीन सीने से दिल ,,
उनका तुम संहार करो ।।
उनका तुम संहार करो।।

पावन घाटी हिम की चोटी ,,
शिव धरती महिमा गाती।।
नदियों के पावन जल से ,,
अंगारे बनाने निकली हूं।।
मैं कश्मीर को गाने निकली हूं।।

मैं नौजवानों को गाने निकली हूं,,
आजादी बरसाने निकली हूं।।
टुट रही उम्मीद को जोड़ ,,
आजाद कश्मीर बनाने निकली हूं।।
मैं कश्मीर को गाने निकली हूं।।


रेणु

-©रेणु शर्मा
जयपुर राजस्थान

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