जजमान की कुंडली (हास्य-व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय

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# जजमान की कुंडली#
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वह नित्य सायं शनि मंत्र का जाप करता है----
         "ॐ शं शनैश्चराय नमः"


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लोग कहते हैं उस पर शनि की साढ़े साती चल रही है।वह ज्योतिषी के पास उपाय के लिए गया-- --किसी भी तरह इस कष्टकारी साढ़े साती से छुटकारा मिले। ज्योतिषी ने अँगूठी दी और कहा हर शनिवार पीपल में जल ढारो--भोजन में सरसों तेल, गुड़ और काले चने का प्रयोग करो--अगर कष्ट अधिक हो तो शनिवार को छाया दान करो। उसने सभी उपाय किए किन्तु साढ़ेसाती का प्रभाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।उसने ज्योतिषी से फिर संपर्क साधा--ज्योतिषी ने उसे उसके जन्मकुंडली के साथ बुलाया--वह तड़के सुबह अपनी जन्मकुंडली के साथ जा पहुँचा ज्योतिषी के पास।ज्योतिषी ने बड़े गौर से उसकी जन्मकुंडली देखी और कहा----
---जजमान!आपकी जन्मकुंडली बताती है कि साढ़ेसाती के साथ आप पर कालसर्प योग भी है,अतःआनेवाला समय बड़ा कष्टकारी है जजमान का।
उसने हाथ जोड़ दिए--पुरोहित जी उपाय बताईये, मैं वह सब कुछ करूँगा जिससे मुझे इससे छुटकारा मिल जाए।

पंडित जी---
जजमान, इन व्याधियों से छुटकारा पाने के लिए आपको "गुरु" भारी करना पड़ेगा।
आपकी कुंडली में "गुरु" कमजोर है और आप क्या, आज समाज के हर व्यक्ति की कुंडली का गुरु कमजोर है---इस "गुरु" के कमजोर होने से ही समाज पर परेशानियों का बाढ़ आ रहा।जजमान!ये जो कोरोना नाम की व्याधि,समाज पर है न,वह "गुरु" के कमजोर होने से ही है।

उसने पूछा---
--पुरोहित जी,ये गुरु कमजोर कैसे होता है और इसके कमजोर होने के लक्षण क्या-क्या हैं?
"गुरु" को भारी करने के उपाय क्या-क्या हैं?

पंडित जी--
--जजमान! यदि 2,5,9,12वें भाव में "गुरु" के शत्रु ग्रह हों या शत्रु ग्रह उसके साथ हों तो "गुरु" मंदा हो जाता है---माने नीच हो जाता है।


जजमान!"गुरु" के कमजोर होने से व्यक्ति या व्यक्ति के परिवार की बिना कारण शिक्षा रूक जाती है, व्यक्ति के मान-सम्मान की हानि होने लगती है, अनावश्यक दुश्मन पैदा होने लगते हैं, घर में भिन्न-भिन्न प्रकार के व्याधियों की बाढ़ आने लगती है ---आदि-आदि---

उसने पूछा--महराज! इस "गुरु" को भारी करने का उपाय क्या है?


पंडित जी---
-- जजमान! इसका उपाय है--सदैव सत्य बोलिए, शुद्ध आचरण किजीए---अपने,अपने परिवार और अपने बच्चों के गुरु का आदर किजीए---  गुरुओं के कष्ट का समाधान किजीए।

वह---वह तो मैं करता हूँ महराज।

पंडित जी--जजमान! यही असत्य आचारण है--और यही आपके और आपके समाज के "गुरु" के कमजोर होने का कारण है। इस काल में अपने "गुरु" की दशा देखी है आपने,आपका "गुरु" किस हाल में है---क्षमता होते हुए भी आप कहते हैं इस लाकडाउन में अक्षम हूँ मैं---मैं अपना "गुरु" भारी नहीं कर सकता-------------
"यह असत्य नहीं तो क्या सत्य है?" 
जजमान!आपका यही असत्य आपके "गुरु" को कमजोर कर आपके लिए तरह-तरह की परेशानियाँ खड़ी कर रहा है--और ये जो आप 2,5,9और12वें भाग में बैठे "गुरु" के शत्रु ग्रहों के प्रभाव में आकर अपने "गुरु" की अवहेलना करते हुए जो गुरु-अपमान कर रहे हैं न,उससे आपका "गुरु" नीच से नीचतर होता जाएगा और आपकी आने वाली पीढ़ियों तक को बर्बाद कर डालेगा।अतः जाईए,सत्य वचन बोलिए, शुद्ध आचरण किजीए, "गुरु" का आदर किजीए--उनकी देख-भाल कर,अपने "गुरु" को उन्नत किजीए, सब साढ़ेसाती और कालसर्प योग कुंडली से समाप्त होगा---जीवन फिर से खुशियों की दौड़ लगाना आरंभ कर देगा----अन्यथा?

हर रोज  प्रातः और संध्या में

       "ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नम:" ,
मंत्र का जाप करें।यह तंत्रोक्त मंत्र ना सिर्फ धन और वैभव की दृष्टि से चमत्कारी है बल्कि तुरंत असर करने वाला है। हे जजमान! जरूरत है तो इस मंत्र को निरंतर जपने की।आप इस मंत्र का जाप गुरुवार को निरंतर किजीए सभी व्याधियों से मुक्ति मिलेगी और वैभव का आगमन होगा।
यदि कुछ करना है तो बस अपने "गुरु" को भारी करना है
पंडित जी ने जजमान से अपना मेहनताना माँगा --तो जजमान कह उठे---महराज!इस लाकडाउन में हाथ खाली है---ही--ही--ही----
पंडित जी--जजमान!जब हाथ खाली है तो गणना करवाना जरूरी था?---कुंडली पढ़वाना जरूरी था? जैसे लक्षण है न आपके, मुझे नहीं लगता कभी आपका "गुरु" भारी भी होगा----
आपको  तो बस सबकुछ----का चाहिए, जाइए दक्षिणा पचाकर आपही राजा हो जाइए---लेकिन दुबारा कुंडली बचवाने मत आइएगा---न त ऐसा कुंडली बाँच देंगे न कि जीवन पर्यत्न साढ़ेसाती और कालसर्प योग चलता रहेगा,उतरेगा नहीं।


घनश्याम सहाय

-©घनश्याम सहाय

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