दैनिक श्रेष्ठ सृजन-23/01/2020 (रामगोपाल प्रयास)

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दैनिक श्रेष्ठ सृजन-22/01/2020
संपादक (दैनिक सृजन) - वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌻🌹
श्रेष्ठ रचनाकार- आ0 रामगोपाल 'प्रयास 'जी
एवं
श्रेष्ठ टिप्पणीकार- आ0 कलावती करवा जी



22 जनवरी 2020

शीर्षक- प्लास्टिक से मुक्ति कैसे संभव ?(परिचर्चा )

वर्तमान में असंभव कुछ भी नहीं है बस आवश्यकता है दृढ़ संकल्प की, दृढ़ इच्छाशक्ति की जब तक किसी कार्य के पूर्ण होने तक दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं रहेंगे समर्पित नहीं रहेंगे कार्य का होना संदिग्ध रहेगा ।
" प्लास्टिक से मुक्ति कैसे संभव "
इस विषय पर चर्चा करना है तो मैं आदरणीय विद्यार्थी जी से आग्रह करूंगा कि अपने विचार व्यक्त करें ।
सभी को सादर नमन , प्लास्टिक से मुक्ति, अंधेरे में तीर चलाने जैसा है, जा लक्ष्य का भेदन कर, कर ही नहीं सकता क्योंकि जब प्लास्टिक से संबंधित कारखाने,उद्योग,लघु उद्योग खोले गये और जिन लोगो ने खोले उन व्यक्तियों ने ये योजना सरकार के सामने रखी होगी, मेरा कहने का आशय प्लास्टिक निर्माण के संबंध में दस्तावेज प्रस्तुत किये होंगे और निर्माण कार्य की अनुमति मिली होगी लायसेंस मिला होगा तभी ये कारखाने खुले वस्तुओं का निर्माण संभव हुआ वरना कैसे संभव थे, जब सरकारी मान्यता मिली हुई है तो प्लास्टिक से मुक्ति कैसे संभव है ।

पांडेय जी -: आप ठीक कह रहे हैं पर इसके कितने दुष्परिणाम है ,पर्यावरण प्रदूषण फैल रहा है, जमीन की उर्वरा शक्ति घट रही है, समुद्र में प्लास्टिक कचरे के ढेर लग रहे है इससे समुद्र का संतुलन भी गड़बड़ाया हुआ है, कितने जानवर प्लास्टिक पन्नी खाकर मर रहें है । जब प्लास्टिक निर्माण किया जाता है उस समय ऐसे रासायनिक तत्व मिलाये जाते है इनसे इतनी जहरीली गैसे उत्सर्जित होती हैं जो वायुमंडल को प्रदूषित कर रहीं है, और जो जहरीला अवशिष्ट बचता है उसे नदियों में प्रवाहित किया जाता है जिससे नदियां प्रदूषित हो रहीं है ।
विद्यार्थी जी -: आदरणीय मेरी बात को समझने की कोशिश कीजिए, जैसा संयोजक महोदय ने कहा असंभव कुछ भी नहीं है परंतु, इस परन्तु का उत्तर यह है कि हमें प्लास्टिक की जो वस्तुयें सबसे अधिक प्रभावित कर रही हैं उनका उत्पादन बंद होना चाहिए जैसे, प्लास्टिक की थैलियां, डिस्पोजल, गिलास, दोना --पत्तल,प्लास्टिक बाटल , तमाखू के पाउच और अन्य दैनिक उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री, यदि इन पर रोक लगती है तो समझ लीजिए आपकी 70% प्लास्टिक से मुक्ति हो गई । और यह संभव जब ही है ये बस्तुयें बाजार में उपलब्ध ही न हों ।

पांडेय जी,पाठक जी, और अन्य महानुभाव जो परिचर्चा में शामिल हैं एक स्वर में कहा विद्यार्थी जी का कथन एकदम सत्य है ।
अभी तक वंदना जी मौन थीं उन्होंने कहा कि -: हमें भी अपने स्वविवेक से प्लास्टिक की दैनिक वस्तुओं का परित्याग करना होगा । सरकार कितने भी प्रतिबंध लगाये संभव नहीं है यथा राष्ट्र हित में सम्मिलित होकर इन वस्तुओं को त्यागना होगा ।
वंदना जी निसंदेह आपकी और विद्यार्थी जी की बात पर अमल किया जाये तो हमें प्लास्टिक से मुक्ति मिल सकती है ।
अब इस विषय पर सम्मानीय समीक्षक गण अपना अभिमत रखेंगें ।

सभी का आभार सादर धन्यवाद ।
स्वरचित
रामगोपाल 'प्रयास '
गाडरवारा मध्य प्रदेश

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