दैनिक श्रेष्ठ सृजन-02/12/2019 (राकेश कुमार जैनबन्धु)

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दैनिक श्रेष्ठ सृजन
साहित्य संपादक- वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ-आ0 राकेश कुमार जैनबन्धु जी

2दिसंबर 2019

शीर्षक- "प्रदूषण कारण व निवारण"
               (निबंध)

 भूमिका- प्रदूषण क्या है? इसका सीधा सा अर्थ है कि- "प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना।"बदलते परिवेश और मानवीय स्वार्थी भावनाओं के कारण नित ही पर्यावरण प्रदूषण होता जा रहा।हम हर कहीं भी अगर नजर दौड़ाएंगे तो प्रदूषण फैलाने में एक ही जाति का हाथ नजर आएगा।वो है मावव जाति। जो लगातार प्रदूषण फैलाने में अव्वल दर्जे पर रही है।चाहे वह जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण हो या ध्वनि प्रदूषण।
 प्रदूषण के कारण
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 जल प्रदूषण- गंगा मैया रो रही , दर्द बड़ा गंभीर।
                   काला मेरा जल हुआ, कौन हरे अब पीर।
     किसी एक नदी की ये हालत नहीं है बल्कि सभी नदियां ये कष्ट झेल रही है। कल-कारखानों का दूषित जल व जगह-जगह कूड़े-कर्कट व प्लास्टिक के ढ़ेर बरसात के समय पानी के साथ बहकर नदियों में चले जाते हैं और बाढ़ के समय उस स्थान की हालात को विभित्स बना देते हैं।नालियाँ व सीवर इनसे बंद हो जाते हैं और बाढ़ या महामारी के दृश्य की स्पष्ट छवि हमारे सामने अंकित होने लगती है।एकत्रित गंदे पानी से बदबू व अनेक नुकसानदायक कीट पैदा होते हैं और समय-समय पर मानव को मृत्यु के द्वार तक पहुँचाते हैं।पानी का अत्याधिक प्रयोग भी जल संकट को निमंत्रण दे रहा है।
भूमि प्रदूषण-जीवन चक्कर घट रहा ,मनुज बना हैवान।
                    तरुवर नित ही कट रहे, धरती खालीस्थान।
    पेड़ों के काटने से, पहाड़ों को तोड़ने से, भूमि की अत्यधिक खुदाई से, प्लास्टिक को भूमि के नीचे दबाने से, फसली अवशेषों को जलाने से भूमि प्रदूषण होता जा रहा है। जो दिनों-दिन बाढ़, भूकंप व सूखे का रूप लेता जा रहा है।
वायु प्रदूषण-  काली नभ की रात है , दिन रहा है खोज।
                      चहुं धुँए का है पहर , हालत बिगड़े रोज।
       बढती जनसंख्या के कारण मनुष्य रहने के लिए नित पेड़ों को काटता जा रहा है। विकासशील देश को विकसित बनाने में अत्यधिक कारखाने लगाए जा रहें हैं।इनको उचित स्थान पर स्थापित करने के लिए जंगलों व शहरों के आस-पास की भूमि को साफ किया जा रहा है।जिससे पेड़ पौधे नष्ट हो रहे हैं और लगाए गए कारखाने धुएँ द्वारा वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं।फसलों के अवशेष को जलाने से नित शुद्ध साँस लेने वाला हवा का स्तर घटता जा रहा है, जिससे दमा जैसी बीमारियाँ पनप रही हैं।
ध्वनि प्रदूषण- भागदौड़ सब कर रहे, नहीं रखा है ध्यान।
                      ध्वनि प्रदूषण हो रहा , बंद हुए हैं कान।
     अत्यधिक वाहनों के आवागमन से वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी होता है।भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर वाहनों के हॉर्न बजने से हर किसी को परेशानी होती है, बीमार अथवा बुजर्ग लोगों को इससे बहुत परेशानी होती है।धार्मिक स्थानों पर व चुनावी समय में भी लाउडस्पीकरों की आवाज भी इस प्रदूषण के कारण हैं।
निवारण- तरुवर तुम मत काटिए , हरियाली के मूल।
               बिन तरुवर खाली धरा , उड़ती रेत फिजूल।
               कुदरत के उपहार हैं ,शुद्ध मिले नित श्वास।
                  रख संजोकर तू इसे जीवन बरसे फूल
      मानव को ये बात समझनी होगी कि पेड़ हमारे सच्चे साथी हैं।जहाँ तक मेरा विचार है, सभी प्रकार के प्रदूषणों के लिए हर सरकार ने समय-समय पर उचित कदम उठाए हैं।पर जब तक जनता का पूर्णतया सहयोग नहीं मिलेगा।तब तक सरकार के प्रदूषण रोकने उपाय कारगर साबित नहीं होंगे। सरकार को नदियों की साफ-सफाई करवानी चाहिए।प्लास्टिक की रोकथाम, वाहन आदि के प्रेशर हॉर्न पर ,लाउडस्पीकरों पर रोक लगानी चाहिए।कारखानों के केमिकल युक्त जल का अलग से प्रबंध करना चाहिए।फसलों के अवशेष न जलाकर उसे जमीन के अंदर दबा दें जो कुछ ही समय में गलकर जमीन की उपजाऊ शक्ति बढाता है। सौर ऊर्जा या बिजली के वाहन को ज्यादा से ज्यादा आवागमन के लिए प्रयोग करें।अधिक से अधिक पौधे धरातल पर लगाने चाहिए।कानून भी सख्त से सख्त बनाएँ।ग्रामीण पृष्ठभूमि से लेकर शहरी क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए ताकि पर्यावरण संतुलन बने और प्रदूषण कम हो।
- राकेश कुमार जैनबन्धु

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