एक और सवेरा (लघुकथा)- मौसमी चंद्रा

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साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)

# एक और सवेरा
(लघुकथा)



"तुम आज के बाद मुझे फोन मत करना आदि"...

बोलते हुए सुमि की नजरें नीचे झुकी थी।वो देखना नहीं चाहती थी आदि का रिएक्शन।

दो पल की खामोशी रही।

सुमि ने धीरे से सर उठाया।आदि की आँखें भरी हुई थी।कंठ में कम्पन!जैसे विष निगलने की कवायद हो।


प

सुमि को महसूस हुआ कोई उसकी देह दो टुकड़ों में बांट रहा है।आह...!तड़प उठी वह!पर इस वेदना को दबाना था उसे।कैसे भी करके।

"तुम एक बार मुझे देखकर ये कह दो सुमि।तुम्हारी सौगंध!नहीं करूंगा कभी कॉल फिर।"

आदि ने धीमे स्वर में कहा।

सुमि ने नज़रें उठाकर मोबाइल के स्क्रीन पर जमा दी।

पहली बार महसूस किया,कितना कठिन होता है झूठ बोलना!

और लोग कैसे बोल देते हैं इतनी आसानी से झूठ!

सुमि ने शरीर की सारी ऊर्जा गले पर लगा दी।

काँपते स्वर गूँजे...

"मत करना कॉल आदि।तुम मुझे खुश देखना चाहते हो तो...मत करना प्लीज..!मेरे ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं।"

"सुमि,चाहे तो मेरी साँसे मांग लो पर ये मत कहो।जी नहीं पाऊंगा।तुम मेरे जीवन का हिस्सा हो अब।इस हिस्से को काट कर अलग करना यातना से कम न होगा।प्यार करता हूँ,जानती हो न!कितना करता हूँ?इसे कभी मापा नहीं, बस इतना जानता हूँ कि नहीं जी सकता तुम्हारे बगैर!"

आवाज़ में याचना थी।



सुमि!जिसने एक सुहागन के रूप में जीवन के आठ बरस काटे और वैधव्य के इस रूप को अपनी परिणीति मान ली।पर विधाता को क्या मंजूर होता है ये वो ही जाने।दो साल पहले आदि से मुलाकात और धीरे धीरे कब आदि उसके मन के रिक्त कोने में बसता चला गया।समझ के परे है।

उससे 5 वर्ष छोटा।पर परिपक्वता में उससे दोगुना!

सुमि की खोई मुस्कान लौटने लगी थी।खुशियों को जैसे उसके घर का पता मिल गया था।

पर जबसे आदि के सहयोगी राघव ने उसे बताया कि उसने शादी के लिए आये रिश्तों को ठुकराना शुरू कर दिया है।सुमि चौंक गई।वजह समझने की जरूरत नहीं थी।

आदि के साथ खुद को सोचते वो कैसे भूल गयी कि वो

एक विधवा है, जो सात साल के बच्चे की माँ भी है। नहीं!अब इस रिश्ते पर पूर्णविराम लगाना ही होगा।

रात बेचैनी से कटी।पर एक हल्का सा सुकून था कि उसने आदि के जीवन को भटकने से बचा लिया।

सुबह बेटे रोहन को स्कूल ड्राप कर वो ऑफिस निकल गयी।मीटिंग,प्रेजेंटेशन ऑफिस वर्क के बीच भी आदि मन के कोने में उदास बैठा रहा।

मीटिंग के बाद जैसे ही सुमि ने मोबाइल निकाला!

ओह गॉड!बारह मिस्ड कॉल!कुछ बस ड्राइवर के और कुछ पड़ोस वाली आँटी के जिनके यहाँ उसके आने तक रोहन रहता है।

घबरा गई वो।कॉल लगाया तो पता चला,बस से उतरने में रोहन गिर पड़ा था। घुटने और ठोड़ी में चोटें आ गयी थी।

"पर तू परेशान न हो ,अब सब ठीक है तू आ जा जल्दी से।"

आँटी ने कहा।

रास्ते भर सुमि रह रह कर अपने आँसू पोछती रही।

कैसे सम्भाला होगाआंटी ने रोहन को।

पर जैसे ही घर पहुंची रोहन के सिरहाने बैठे आदि को देख उसे जवाब मिल गया।

"तुमने फोन नहीं उठाया तो मैंने ही आदि को फोन कर दिया था..चलो..अब मैं चलती हूँ तुम ध्यान रखना रोहन का।''

कहकर आँटी चली गयी।

सुमि ने सोये हुए रोहन के सर को प्यार से सहलाया।

आदि की तरफ देखा पर बोल नहीं फूटे।दो लड़ियां आंखों से बहने को बेताब थी।

"चाय पियोगे?बनाती हूँ"..कहकर सुमि उठने लगी।

तुम बैठो,मैं बनाता हूँ।आदि ने अपनी हथेली सुमि के कंधे पर थपथपाई।

"परेशान मत हो सुमि मैं हूँ और आगे भी रहूंगा।मैंने रात ही ये निश्चय कर लिया था।हां जानता हूं कुछ सवाल होंगे लोगों के पर कितने दिन?पर वे सवाल उठनी तकलीफ नहीं देंगे मुझे जितनी तकलीफ तुमसे अलग होने का होगा।वो दर्द असहनीय है।या तो तुमसे शादी करूंगा या किसी से भी नहीं।यहीं फैसला है मेरा।इसे पूरा करने में जो भी रुकावट आएगी सब दूर करूंगा।आज से तुम्हारी सारी जिम्मेदारी मेरी।बोलो सुमि बांटने दोगी न अपनी सारी जिम्मेदारी मुझे भी?"

सुमि उठकर आदि के सीने से लग गयी।उसकी धङकनों ने हाँ बोल दिया।


मौसमी

- मौसमी चंद्रा
कवयित्री व कहानीकार
पटना, बिहार
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