चूल्हे की रोटी (लघुकथा)- अनुज सारस्वत

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# चूल्हे की रोटी 
     लघुकथा



"पापा जी चलो ना शहर वहां मैंने फ्लैट लिया है"

अनुभव ने गांव आकर अपने पिताजी से कहा 

पिताजी बोले "अरे बेटा रहने दे तू खुश है ना काफी है मैं तो ही ठीक हूं तेरी मां के जाने के बाद कहीं जाने का मन नहीं करता "

"अरे पिताजी चलो ना हो गई आपकी जिद अब मेरा मानो "

अनुभव जबरदस्ती पिताजी को लेकर शहर  पहुंचकर अपने फ्लैट में ले गया जो कि 19वीं मंजिल पर था, पिताजी स्तब्ध रह गए थे बड़ी बिल्डिंग देख कर ,फिर उसके फ्लैट में गये जो  टू बीएचके था,अनुभव ने शादी के बाद लिया था , जाते ही बहू ने पैर छुए और पूछा पिता जी आइए आपको कैसा लगा हमारा फ्लैट ,बच्चों का मन रखने के लिये पिताजी ने झूठी तारिफ कर दी , उस दिन बहू ने खाना वगैरा खिलाकर ,एक दूसरे कमरे में बिस्तर लगा दिया, उस रात पूरे समय पिताजी को नींद नहीं आई तीन-चार दिन जैसे तैसे काटकर  अनुभव से कहा 

"बेटा मुझे तो गांव छोड़ आ"

 अनुभव ने कहा 

"कोई गलती हुई क्या पिताजी"

"नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है बस नई जगह वैसे ही मुझे अपनी खटिया पर ही नींद आती है और खुले आसमान के नीचे, वैसे भी तुम दोनों नौकरी पर चले जाते हो "

 पिताजी को उसका फ्लैट एक कबूतर खाने से ज्यादा और कुछ नहीं लगा था जो घुटन देता था ।

 अनुभव और उसकी पत्नी ने फिर कहना मान कर गांव छोड़ने की तैयारी करने लगे ,फिर उसके पिताजी ने कहा 

"अरे बेटा मैं बताना भूल गया 15 दिन बाद तेरी मां की पुण्यतिथि है तो मंदिर पर भंडारा और पूजा रखी है तो बहू को लेकर तो आ जाना मैंने बहू के  मां पिताजी को भी बोल दिया है , सब आ रहे हैं "

इन दोनों ने भी हां बोल दिया 15 दिन बाद सब लोग गांव पहुंचे शादी के बाद अनुभव की पत्नी पहली बार गांव गई थी काफी लोग बैठे हुए थे, बहुत बड़ा आंगन और 8-10 कमरे का बड़ा मकान था एक कमरे में तो गेहूं और चावल ही भरे हुए थे ,खेत की ताजी सब्जी रोज आती थी ,सामने ही अमरूद ,आम का बाग था और आंगन में एक नीम का पेड़ था जिस पर कभी मोर कभी कोयल  कितनी प्यारी लगती थी सुबह सुबह कोयल की कूक, मोर अपने पंख छोड़ कर जाया करते थे, यह सब  अनुभव की पत्नी नोटिस कर रही थी, रात को सब खुले आसमान के नीचे खटिया लगा कर सोते थे, उसकी पत्नी ने पहली बार खुला आसमान चांद तारे के नीचे सोकर रातें बताई थी, और ऊपर से ठंडी ठंडी मंद हवा के झोंके शरीर को परम शीतलता प्रदान करते   AC को मात देते हुए।

प्रोग्राम खत्म होने के बाद  पिताजी अनुभव और बहू को लेकर खेत खलियान दिखाने ले गये जो कि गेहूं, दाल,धान से भरे लहलहा रहे थे।

 अगले दिन बेटे का टिकट था तो पिताजी ने पूछा 

" कोई परेशानी तो नहीं हुई यहां थोड़ी लाइट की दिक्कत रहती है फिर बहू को पूछा बहू कैसा लगा घर और गांव"

 अनुभव और उसकी पत्नी ने एक दूसरे की तरफ देखा और पिताजी के पैर छूकर बोले पिताजी अब आप अकेले नहीं रहेंगे हम लोग अब गांव में रहेंगे मैं खेत संभाल लूंगा और यह घर संभालेंगी और गांव के बच्चों को पढ़ायेगी," इतना परिवर्तन देखकर बाबूजी बहुत खुश हुए,और एक संतुष्टी भरी मुस्कान उनके चेहरे पर खिल गयी, और खूब आशीर्वाद दिया कि "जुग जुग जियो"

 अनुभव नई नई टेक्नोलॉजी की सहायता से खेत खलियान को और पैदावार बनाया और ई मंडी के थ्रू डायरेक्ट अनाज और सब्जी बेचने लगा ,इधर उसकी पत्नी ने गांव में बच्चों को साक्षर करने का बीड़ा उठाया और सबको फ्री ट्यूशन देते अब तो वह चूल्हे की रोटी भी बनाना सीख  गई थी जो कि ताजे सरसों के तेल और जीरे से छुके छाछ और गुड़ के साथ  सबको खिलाती और खुद खाती थी,जब बह गर्भवती हुई तो अच्छे ,शुद्ध खान पान के कारण बहुत हषट पुष्ट और सुंदर बच्चे को जन्म दिया नोरमल डिलीवरी के साथ, जो कि शहरों से यह प्रकिया विलुप्ति के कगार पर है ।

-अनुज सारस्वत की कलम से 
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