नारी का उत्थान (कविता)- प्रेम बजाज

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#नारी का उत्थान



करते हैं हम नारी उत्थान की बातें , फिर महावारी में  क्यों नहीं करते उनके सम्मान की बातें ।
जब बनती है मां नारी तो पुजा जाता है उसे , क्योंकि वो पाल रही है अंश हमारा ,
प्रकृति के नियम में वहीं नारी महावारी में बन जाती अछुता ।

क्यों बेटी को डराया जाता है , महावारी का खौफ दिखाया जाता है, 
कभी स्कूल से हटाया जाता है , कभी दफ़्तर में ना बुलाया जाता है । 
बड़े- बुजुर्ग कहते बेटी अब स्कूल नहीं  जा पाएगी ,
महावारी और शिक्षा मे तालमेल नहीं बैठा पाएगी , 
जब जाना नहीं उसे मन्दिर में तो शिक्षा मन्दिर कैसे जाएगी , 
वो तो अब अछुती बन जाएगी ।

क्यों भ्रम में मन में पाला है , क्या इश्वर इन सबसे निराला है ,
 वो भी मां के गर्भ का ही आला है ।
पेट की अंतड़ियां खिंचती , दर्द से बेहाल होती ,
 सब कुछ ये बेटी सहती ,देखो फिर भी इसके होते कहते बेटी नहीं पढ़ पाती ‌,
 क्योंकि इसे हर नारी शर्म की बात कहती ।

 काम पूर्ति या संभालना चुल्हा - चौका  ही नारी का काम नहीं , 
चलती आज मिलाकर कंधे से कंधा फिर तो महावारी छुपाना आसान नहीं ।
कैसे छुपाएगी वो अपनी पहचान को , ग़र नहीं समझाओगे ,बताओगे , 
पढ़ाओगे उसे तो कैसे आगे बढ़ाओगे नारी के उत्थान को ।
नारी के सम्मान में ही पौरूषता की आन है , नारी के जीवन को बनाना सुशिक्षित और महान है ।
महावारी कोई नहीं है बिमारी , इन्हीं  खून के थक्कों  से नारी ने जनी दुनियां सारी ।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के संग  , बेटी को समझाओ, और महावारी से ना डराओ 
ये भी एक स्लोगन बनाओ ।




प्रेम बजाज, जगाधरी (यमुनानगर)
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