हिंदी दिवस (कविता)- प्रेम बजाज

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# हिंदी दिवस#

हिन्दी की बिंदी सुन्दर लगती है , ज्यों सुहागिन के माथे बिंदी सजती है ।

अ, आ, अं और  के, ख, ग से सारे शब्दों ने लिया जन्म है , हिन्दी का 

अस्तित्व अद्भुत, अजर और अमर है  ।

हिन्दू- मुस्लिम , सिख - ईसाई आपस में सब भाई - भाई ,हिन्दी ने ये बात सिखाई ।


हिन्दी सब को मन से जोड़ती , हमें सभ्यता की ओर मोड़ती  ।

हर हिन्दुस्तानी को प्यार हिंदी से , संस्कृति की पहचान हिंदी से ।

हर दिन, हर पल  रहते हम हिन्दी से दूर , विदेशी भाषाएं बोल-बोल कर 

उच्च साबित करते हैं , हिंदी  में ना बात करके हिंदी को अपमानित करते हैं ।

 हिन्दी की बहना उर्दू ने हमको शायरी सिखाई है , फिर कैसे कह दे 

हम हिन्दी अपनी नहीं पराई है ।

हिन्दी बोलने - पढ़ने से भला क्यों आती हमको शर्म है ,

हिन्दू संस्कृति ही सबसे बड़ा धर्म है ।

मातृभाषा यही है , राष्ट्र भाषा यही है , कैसे ना हम इसका मान करें 

आओ मिल कर सब हिंदी का उत्थान करें ।


एक दिन हिंदी दिवस मना कर तीर क्या कोई मार पाएगा ,

जो है सच्चा हिन्दू वो सदा ही हिंदी के गुण गाएगा ।


 # सम्मानित करो राष्ट्र भाषा 

 हम सब की यही अभिलाषा#


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-©प्रेम बजाज,
जगाधरी ( यमुनानगर ) 

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