गाँधीजी के विचारों का प्रवाह (आलेख)- ज्ञानीचोर

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# गाँधीजी के विचारों का प्रवाह#

जब किसी महान व्यक्तित्व की चर्चा होती है तो उसका सीधा संबंध उसके व्यवहारिक चारित्रिक आदर्शों से होता है। उसके कर्म क्षेत्र की परिधि पर, राष्ट्रीय और वैश्विक दृष्टिकोण के परिप्रेक्ष्य पर दृष्टि रहती है।

जब महात्मा गाँँधी जैसी महान विभूति की चर्चा होती है तो व्यक्तित्व मापन की सारी परिसीमा पार हो जाती है फिर भी लगता है उनका गुणगान मूल्यांकन अधूरा है। इसका कारण इनका विस्तृत कर्मक्षेत्र, ज्ञान की विविधता, उनका हर क्षेत्र में योगदान, चाहे वे राष्ट्रीय हो या वैश्विक। जैसे-जैसे युग परिवर्तन होता रहेगा गांधीजी की प्रासंगिकता बनी रहेगी और बढ़ती रहेगी।इसका एक कारण यह भी गांधीजी युगदृष्टा युग प्रवर्तक और दूरद्रष्टा के रूप में हमारे सामने आते हैं।


गाँधीजी

अफ्रीका प्रवास हो चाहे लंदन यात्रा सत्य व कर्म परिधि से बंधे रहे, कष्टों का मार्ग चुना। जिज्ञासा व्यक्तित्व को महान पथ के निर्माण के लिए अग्रसर करती है और जहां सर्जनात्मक उर्जा होती है वहां सीमाओं के बंधन टूट जाते हैं। यही गांधी जी के व्यक्तित्व की मूल विशेषता थी।

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 जिस अहिंसा को बौद्ध व जैन धर्म ने महिमान्वित किया कालांतर में गर्त में गिरी। इसी अहिंसा को गांधी जी ने नए रूप में संशोधित कर मूल रूप के साथ वैश्विक पटल पर रखा। अहिंसा को सिर्फ उपदेश तक सीमित रखा जाता था उसी को पवित्र साधन बनाकर हिंदुस्तान को जागृत किया। वर्षों की दासता से मुक्ति दिलाई और इसी अहिंसा को जन मन में बसा कर आंदोलन का रूप दिया।

 गांधीजी के अफ्रीका लौटने से पहले कांग्रेस सिर्फ अपनी बातों को अंग्रेज सरकार के समक्ष रखती थी पर गांधीजी के जुड़ने के उपरांत जन भावनाओं जनरूचि प्रवृत्ति और उनके जीवन स्तर से जुड़ी मांगों को उठाकर जन सामान्य को अपने से जोड़ा।

 गाँँधीजी के करिश्माई नेतृत्व के कारण हर वर्ग युवा, प्रौढ़, व्यापारिक, शिक्षित, महिलाएं, उद्योगपति, धार्मिक, पत्रकार उनसे प्रभावित था। रक्तपात का उनकी नैतिक दृष्टि में कोई स्थान नहीं था।

गांधीजी भली-भांति जानते थे अंग्रेजी सत्ता को हथियारों के बल पर रक्तपात से कभी भी हटाया जा सकता है परंतु यह आजादी स्थाई नहीं होती। भविष्य में भारत में बात-बात पर जनसमूह अपनी मांगों के लिए रक्तपात का मार्ग चुनेगा; गृहयुद्ध होते रहेंगे।इसी कारण गांधीजी हथियार के बल पर नहीं अहिंसा व सत्याग्रह की शक्ति से आजादी के मार्ग को वर्षों तक प्राप्त करने की ठानी।

 यही कारण आज गृहयुद्ध जैसे हालात हमारे यहाँँ नहीं  है।

कृष्ण का कर्म संदेश उनका जीवन दर्शन था। उनके रचनात्मक कार्य खादी का प्रचार,स्वदेशी अपनाना, स्कूल खोलना, बुनियादी शिक्षा, चरखा संघ,सत्याग्रह आदि अनेक प्रयास जिससे तात्कालिक परिस्थितियों में न सिर्फ बदलाव किया जनसामान्य की अवधारणा को बदल दिया।

 उनके अवदान की चर्चा करें तो शायद शब्द नहीं होंगे सरस्वती के कंठ में। इतने अमूल्य सिद्धांत जिनका अपने जीवन में प्रयोग कर सिद्ध किया तथा विश्व के सामने नया मार्ग प्रशस्त किया। जब विश्व कहता है 'गाँँधीजी अमर है' इसका अर्थ विश्व को दिया उनका दिशा-निर्देश ही है जो आज तक प्रासंगिक है।

जब हम इन्हें बापू हम कहते हैं तब इसका आशय है कि वे सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक, आर्थिक, वैश्विक,राष्ट्रीय, स्थानीय हर क्षेत्र में नई भूमिका के जन्मदाता है।

 बाबू कहने से आत्मीयता का भाव जागृत होता है राष्ट्रपिता कहने से राष्ट्रीय गौरव का।

 गाँँधीजी अनासक्त कर्म योगी थे साथ ही वे अनेक भूमिकाओं में भी घिरे रहे। वैद्य की सी निपुणता, वाकपटुता, शालीनता, अच्छे श्रोता, राजनेता नहीं जननेता थे। अर्थव्यवस्था के जानकार,वेदों पुराणों के अध्येता, सूक्ष्मता से विचार करें तो शायद जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र न हो जिन में इनकी गति नहीं थी।

 बाँँध मे पानी उसकी क्षमता से ज्यादा आ जाता है तब विनाशलीला प्रत्यक्ष होती है।

 बापू तो महासागर की तरह थे जीवन के विविध अनुभव, ज्ञान के अनेक क्षेत्रों को समा लिया और अपने साधारण जीवन को साधारण ही रखा।

 दुनिया अपनी धरोहर को तब संभालती है जब वह जीर्ण अवस्था में आ जाती है। विश्व के अनेक अमर महापुरुष जिन्हें दुनिया अपनी घृणा का शिकार कर पूज्य बनाया। जीवित रहते उपेक्षित करती रही। किसी को विष(सुकरात) किसी को सूली(यीशु) पर चढ़ाया तो किसी को बंदूक की गोली का शिकार बनाया।

 वैष्णव मत को मानने वाली गांधीजी 'पर पीड़ा' को अपनी पीड़ा समझ कर परमार्थ में लगे उसे सच्चा वैष्णव मतावलम्बी मानते।

वेद में लिखा है  सत्य एक ही होता है विद्वान उसकी अलग- अलग व्याख्या करते हैं। गांधीजी भी ऐसे ही एक सत्य है। विद्वत समुदाय या जिन्होंने इनको जाना वो अपनी धारणा, विश्लेषण क्षमता के अनुरूप उन्हें प्रकाशित करता है। उनके रहते ही गांधीवाद जैसी अवधारणा का चलना इस बात का द्योतक है कि वे वैश्विक व राष्ट्रीय परिवेश तथा तात्कालिक जन प्रवृत्ति के केंद्र में थे।

 हाशिए पर खड़े जन के बारे में किसी ने सबसे पहले इस आधुनिक युग मे भारतीय परिवेश में सोचा तो हम निसंकोच बापू का नाम लेंगे । 

धरती ही दोनों गोलार्द्ध में बापू जितने प्रासंगिक हैं शायद आने वाले कई दशकों बाद चर्चा चले कि एक अर्धनग्न साधु ने अहिंसा से हिंदुस्तान को स्वतंत्रता दिलाई अपनी एक लाठी के बूते पर तो विश्वास करना उस पीढ़ी के लिए कठिन होगा। घर-घर पूजे जाएंगे।

 सत्य के रास्ते पर चलकर जिस कार्य को यदुवंशी श्रीकृष्ण पूरा नहीं कर पाए उस कर्तव्य को पूरा करना इन्हीं के दैवयोग में था। कृष्ण ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर महाभारत तक सफर तय किया युद्ध विनाशलीला पर उनको चलना ही पड़ा परंतु इस कार्य में गांधीजी कहीं ज्यादा सफल रहे। बिना युद्ध किए उन्होंने स्वतंत्रता का सवेरा, उषा की लाली, स्वच्छ व सुंदर वातावरण का निर्माण किया।

 'ज्ञान ही सद्गुण है।' अरस्तु के इस वाक्य को सत्य कर दिखाया। आज की पीढी के लिए बापू किसी रहस्य या अजूबे से कम नहीं है।

अमरत्व  कोई पेय नहीं है बल्कि एक निष्काम कर्मयोग हैं। अमरता एक विशेषण नहीं है यह कर्म का सुपुण्य पथ है। बापू को श्रद्धांजलि के प्रसंग बदलते रहेंगे। वे अकाल पुरुष और युगातीत पुरुषोत्तम है।


ज्ञानीचोर

--ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़,सीकर राजस्थान।
मो. 9001321438
ईमेल - binwalrajeshkumar@gmail.com

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