साहित्य संगम संस्थान के नाम सन्देश

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संगम सवेरा वेब पत्रिका
साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)


सहित्यसंगमसंस्थान

# *साहित्य संगम संस्थान के नाम सन्देश *#

(योगशाला साहित्य संगम संस्थान से चयनित)
1.
*निशा"अतुल्य" जी का पत्र*

आदरणीय संस्थापक मोहदय 
साहित्य संगम संस्थान 
20.9.2020

मोहदय नमस्कार 

मैं निशा"अतुल्य" साहित्य संगम संस्थान की एक सक्रिय सदस्य हूँ ,जो नित नियम से विधा युक्त सृजन करती हूं और अपने सृजन के प्रोत्साहन हेतु आपसे सम्मान प्राप्त कर अति उत्साहित होती हूँ ।

     साहित्य संगम संस्थान एक ऐसी संस्था है जो निष्पक्ष चयन करती हैं और प्रतिभागियों के सम्मान की रक्षा करती है ।

     आज के समय में कुकुरमुत्ते की तरह साहित्यिक संस्थानों से अनगिनित मंच बने हुए हैं जो दो चार दिन बाद ही साँझा संकलन के नाम पर  उगाही शुरू कर देते हैं और ये बात  रचनाकार होते हुए मेरे मन को बहुत व्यथित करती हैं ।

       मैं आभारी हूँ संस्थापक जी की जो साहित्य संगम संस्थान को इस दलगत साहित्य से अगल रख कर एक चमकती छवि बनाए रखने में सफल हैं। बस इधर कुछ दिन से फेस बुक पर अधिक तव्वजों के कारण हम व्हाट्सएप समूह के लोग अपने को अलग थलग उपेक्षित महसूस कर रहें हैं । क्यों कि अब पहले की तरह व्हाट्सऐप पर ना सम्मान पत्र दिए जा रहें है और ना ही उत्कृष्ट रचनाकारों की नियमित सूची जिससे मन कभी कभी व्यथित होता है ।

        खैर ये आपका वैधानिक क्षेत्र है , बस मन में विचार आया तो सोचा एक सन्देश द्वारा आपको अवगत करा दूँ हो सकता है आप इस पर ध्यान दे कर , समूह पर फिर से सक्रियता को बढ़ावा देंगे ।

      आपका साहित्य के प्रति समर्पण निःसन्देह निर्विवाद है ।

मैंने व्यक्तिगत इस संस्थान से बहुत सीखा है जिसके लिए मैं संस्थान की सदा ही ऋणी रहूँगी । 

साहित्य के साथ योग शाला का अपना अलग ही महत्व है जो नित नियम से शरीर को स्वस्थ रखने की प्रेरणा देता है। स्वस्थ शरीर स्वस्थ मन व बुद्धि का परिचायक है ऐसा मेरा मानना है ।

      मैं आपके समर्पण भाव को नमन करती हूँ । सदा ही प्रेरणा पाकर अच्छा सृजन करने की और अग्रसर रहने का प्रयत्न करूँगी । 

    इसी विश्वास के साथ साहित्य संगम संस्थान को बहुत बहुत शुभकामनाएं सदा ऐसे ही हम जैसे रचनाकारों को आगे बढाने में सहयोग देते रहें ।

     धन्यवाद 

संस्थान की एक रचनाकारां
निशा"अतुल्य"

2.
* लता खरे : साहित्य संगम संस्थान को पत्र*

प्रति,
           अध्यक्ष
            साहित्य संगम संस्थान
            नई दिल्ली

विषय-   आपके संस्थान के प्रति मेरे भाव   

               मै लता सगुण खरे,छत्तीसगढ़ से हूँ,मै विगत ढाई वर्षों से आपके संस्थान की एक सदस्या हूँ,मै भी आज इस संस्थान के प्रति आपने भाव/ सुझाव लिखने के लिए आमंत्रित विषय पर यह पत्र लिख रही हूँ  

          यह सत्य है कि,आज का समय फोन चर्चा से बहुत आगे ई मेल,एस एम एस के द्वारा त्वरित संदेश प्रेषण से भी आगे वीडियो कॉलिंग यानि प्रत्यक्ष वार्तालाप तक पहुंच चुका है,किन्तु फिर भी गम्भीर चर्चा और विमर्श पत्रों के द्वारा ही सम्भव है।यदि ऐसा नही होता तो समाचार पत्रों,शोध पत्रों,पत्रिकाओं मे सम्पादक के नाम पत्र आज भी क्यों लिखे जाते?किसी के हाथ से लिखे पत्र और उसके हस्ताक्षर मे जो सम्मोहन होता है,वह इस टाईप किए या एस एम एस मे कहाँ?

             साहित्य संगम संस्थान  हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास और संवर्द्धन में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहा है।देश के प्रति सजगता, समाज सुधार, राष्ट्रीय चेतना, मानवीयता, समसामयिक घटनाओं पर लेखन ,इन सब पर साहित्य संगम का विशेष ध्यान रह्ता है।इसके विभिन्न मंचो पर हमे अनेक रोचक कार्यक्रम,और श्रेष्ठ रचनायें,साहित्य की विभिन्न विधाओं का ज्ञान उन्नत रचनाकारों के माध्यम से प्राप्त हुई  है। 

        संस्थान से समय समय पर कई हिन्दी पत्रिकायें,काव्य संग्रह भी प्रकाशित होते रह्ते हैं जिनकी मूल विषयवस्तु भारतीयों मे हिन्दी के प्रति रुचि जागृत करना तथा सत्य, न्याय और कर्त्तव्यनिष्ठा का प्रसार करना तथा जनता को एकता की भावना का पाठ पढ़ाना है।

    बिना किसी वित्तिय सहायता से एक संस्थान को चलाना,अनेक रचनाकारों को गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर उनमे उत्साहवर्धन कर साह्तिय के आकाश मे उन्हे प्रतिष्ठित करना,बिना किसी भेदभाव के विनम्र स्वभाव,मधुर वाणी के द्वारा सभी के साथ आत्मीयता पूर्ण व्यव्हार से ही आ0 राजवीर के द्वारा इस दुष्कर कार्य को सुगम बना दिया गया है।आ0 अध्यक्ष जी यह अपने आप मे हिन्दी साहित्य के लिए बहुत बडा काम कर रहे हैं।

  मै स्वयं इसका उदाहरण हूँ, मेरी साहित्यिक प्रतिभा का थोड़ा सा ज्ञान मुझे

यहीं मिला है। 

     हिन्दी कविता की विभिन्न विधाओ को हम इस संस्थान मे देखते हैं

  संस्थान के सारे साहित्य में हमेशा रुचि की गतिशीलता और जड़ता समान्तर चलती रहती है. ।

    किन्तु ,विडम्बना यह है कि अकसर और इन दिनों तो ज़्यादातर जड़ताअन्य संस्थाएं फैलाती हैं, हालांकि उनका काम गतिशीलता सुनिश्चित और प्रोत्साहित करना होना चाहिये, जो वो नही करती और हमे यहाँ सबकुछ मिलता है।

       अन्त मे मेरा एक सुझाव है,वाट्सअप  मे एक दूसरे को ज्यादा समीप पाते हैं,उसमे त्वरित प्रतिक्रिया दे सकते हैं,अत: फेसबुक की भांति इस पर भी पहले की तरह पूरा ध्यान दिया जावे। सम्मानपत्र वाटसप भी दिये जावें।

      मेरी तरह अन्य कई लोग फेसबुक पर उसी तरह असहज अनुभव करते हैं,जैसे कुम्भ के मेले मे हम भीड मे फस गये हों।

                शुभकामनाओ सहित,
                                  लता सगुण खरे

3.
*राजेश कौरव सुमित्र जी का पत्र*

आ.अध्यक्ष जी

साहित्यसंगम संस्थान दिल्ली

विषय --साहित्यसंगम संस्थान के नाम संदेश पत्र

महोदय जी,

साहित्यसंगम संस्थान हिन्दी सेवा के लिए देश में प्रथम स्थान पर गिना जाता है।अनेक प्रांतीय इकाई गठन के साथ देश का कोई क्षेत्र नहीं बचा, जहाँ संगम का शंखनाद पहुँचा न हो।अनेक शालाओं और अनेक पत्रिका प्रकाशन द्वारा नवोदित साहित्यकारों का सहज ही संस्थान की ओर आकर्षण बढ़ा है।संस्थान की सबसे बड़ी विशेषता सीखने सिखाने का सिद्धांत तथा कुशल व योग्य विद्वानों की उपस्थिति है।

मैं थोडी़ सी साहित्यिक जानकारी रखने वाला निम्न सुझात्मक संदेश देना चाहता हूँ---

1*बहुत सी इकाईयों पर एक ही रचना प्रकाशित करना रोका जावे।हर इकाई के लिए अलग  विषयानुसार रचनायें स्वीकार हो।

2* जिस मंच के जो पदाधिकारी होते हैं,वे प्रतियोगिता में भाग न लेकर सिर्फ अन्य साहित्यिक रचनाओं की समसमीक्षा ही करें।अन्य मंच की प्रतियोगिता में भाग लें।यदि रचना लिखी भी जावें तो सिर्फ प्रेरणा के लिए, सिखाने के लिए, उसे प्रतियोगिता में न लिया जावें।

इससे सभी मंचों पर सक्रियता बढ़ेगी और मुख्य मंच की तरह सभी मंच गतिशील हो जावेगें।

उपरोक्त सुझावरूपी संदेश देने के पीछे कमी बताना उद्देश्य नहीं है बल्कि मेरी वैचारिक दृष्टि से संस्थान के लिए, साहित्यकारों के लिए हिन्दी उत्थान के लिए, सबका साथ व विश्वास के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं।

हिन्दी तो राष्ट्रभाषा बनकर रहेगी फर संस्थान की सेवा भी इतिहास बने, इसी कामना के साथ---

जयहिन्द।कुछ अनुचित भाव लगें तो क्षमा करना।

शुभचिंतक
राजेश कौरव सुमित्र
नरसिंहपुर, म.प्र.
      
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