दैनिक श्रेष्ठ सृजन-09/03/2020

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संगम सवेरा पत्रिका
साहित्य संगम संस्थान
रा. पंजी. सं.-S/1801/2017 (नई दिल्ली)
दैनिक श्रेष्ठ सृजन-
संपादक (दैनिक सृजन) - वंदना नामदेव
हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌻🌹
श्रेष्ठ रचनाकार- आoभारत भूषण पाठक देवांश जी
एवं
श्रेष्ठ टिप्पणीकार- आoकृपा शंकर सिंह जी

सम्मान पत्र👇






9/3/2020
शीर्षक- होली ( समाज को खुला पत्र )

      आदरणीय गुरुजनों को समर्पित मेरा यह तुच्छ प्रयत्न :-
 सभी बड़ों को प्रणाम, स्नेही जनों को आशीर्वाद  सह सकल राष्ट्र का वंदन,वीर सैनिकों की जय के साथ सभी को वन्दे मातरम्।

आदरणीय समाज व इसमें समाहित सकल जीव जगत आप सबों को होली पर्व पर हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएँ। 
प्रिय जनों व आदरणीय समाज के लोगों आज आप सबों को इस होली के पावन अवसर पर पुनः हार्दिक हार्दिक बधाई प्रेषित करते हुए कहना चाहूँगा कि होली बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक है।पौराणिक मान्यता के अनुसार भक्त प्रह्लाद की बुआ होलिका अपने भाई व प्रह्लाद के  पिता की प्रेरणा से प्रह्लाद को मारने के लिए आग में बैठी, परन्तु भगवत्कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए,परन्तु होलिका दैवयोग से मारी गयी, प्रह्लाद को जलाते-जलाते स्वयं जल गयी। जहाँ  हिरण्यकश्यिपु बुराई व अनाचार का प्रतीक था, वहीं प्रह्लाद अच्छाई के प्रतीक व आह्वाहक के रुप में थे। 
हिरण्यकश्यिपु बुराई का प्रतीक था और उसका अन्त भी हुआ। 
इस दिन लोगों ने बहुत ही भव्य आयोजन के साथ होली मनाई थी। 
  दूसरी मान्यता के अनुसार ब्रज में होली की शुरुआत जो श्रीकृष्ण व माँ राधा के निश्छल प्रेम का भव्य आयोजन के रुप में होली पर्व का प्रारंभ हुआ था । वहाँ की होली विशेषतः बरसाने की होली बहुत भव्य होती है, वहाँ लठ मार होली प्रसिद्ध है। सज्जनों होली पर्व के साथ ही हिन्दू नववर्ष का भी प्रारम्भ हो जाता है। इस पावन पर्व की महिमा यही है कि प्रकृति भी आनंदित नजर आती है, चहुँओर हरियाली ही हरियाली नजर आती है। 
मानो वो हमें नववर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित कर रही हों। 
परन्तु आधुनिक काल की होली में पारस्परिक सौहार्द, यथोचित अनुशासन का अभाव-सा दर्शित होता है। 
पुरातन काल में होली का आशय पारस्परिक सौहार्द सह अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति हुआ करती थी, लोगों में आपसी प्रेम बना हुआ था। धर्म सम्प्रदाय इत्यादि की भावना नहीं होती थी। परन्तु आज तो समाज में विभिन्न प्रकार के मतभेद नजर आ रहे हैं, इस स्थिति को हमें परिवर्तित करने की आवश्यकता है, परन्तु यह एकमेव संभव होने वाली विषयवस्तु नहीं। इसके लिए हम सबको मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। 
 आज समाज में फैली कुरीतियों इत्यादि का शमन करने की आवश्यकता है। साथ ही आधुनिकतम समाज की परिस्थिति को देखकर अतिशय सावधान रहने की आवश्यकता पड़ेगी।हमें इस भाँति के रंग का चुनाव करने की आवश्यकता पड़ेगी:-
रंग प्रेम का हो तो दिखता अच्छा है। 
रंग दुश्मनी का हो तो उसे रंग नहीं कहते। 
मैं बस यही एक बात हर बार कहता हूँ ।
इससे तो अच्छा हो जब रंग ही न हो। 

तो  हमें उपर्युक्त की भाँति रंगों का चुनाव करना होगा जिससे कि हमारा यह परम पावन नववर्ष होली पर्व  भव्यता से मनाया जा सके। 
 साथ ही वर्तमान परिवेश में करोना नामक व्याधि ने हमें आतंकित कर रखा है, इसके लिए हमें आनंद के प्रतीक उत्तम रंगों का चुनाव करना होगा ताकि हम अपनी इस काया को सुरक्षित रख सकें। 
साथ ही इस आह्वान स्वरुपी पत्र को युवाओं को समर्पित करते हुए कहना चाहूँगा कि होली को स्वच्छता व आनंद के साथ मनायें, इसके लिए अतिशय आवश्यकता है कि आप मद्यपान, अश्लील संगीत से स्वयं व समाज को सुरक्षित करें। साथ ही एक सशक्त व सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो आप राष्ट्र निर्माण हेतु अग्रसर हों। 
 विशेष आह्वान होली पर्व पर मैं यह भी करना चाहूँगा कि कम से कम इस परम पावन सुखद पर्व पर आप बाईक चलाते समय हेलमेट व अतिद्रुतगामी गति से बचें।साथ ही आप चतुष्चक्रिय वाहन चलाते समय सीट बेल्ट अवश्य व्यवहार करें। 
अन्त में सभी नारियों का उचित सम्मान करने का भी आप सब से अनुरोध करना चाहूँगा। 
अन्त में समाज के सभी वरिष्ठ, प्रबुद्घ आदरणीय जनों को प्रणाम, नमन सह चरण वंदन। छोटों को अनंत शुभाशीष। 
 :-भारत भूषण पाठक "देवांश"

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