चौपाई छंद विधान

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आइए, एक अति लोकप्रिय छंद चौपाई रका विधान देखते हैं।
वस्तुतः तमाल, निश्छल, गगनांगना, विष्णुपद, शंकर, सरसी, सार, प्रदीप, लावणी, कुकुभ, टाटंक, वीर (आल्हा ) आदि छंदों का आधार चौपाई ही है। चौपाई छंद में ही मात्रिक योग कर विविध चरणांत के सहयोग से इन छंदों का सृजन होता है।

#चौपाई छंद

विधान- चार चरण, 16 मात्रा प्रति चरण। चरणांत- वाचिक गुरु। क्रमागत दो-दो चरण सम तुकांत।

👉उत्तम लय के लिए कुछ आचार्य अंत में दो वाचिक गुरु रखने के लिए कहते हैं।
अधिकांशतः चौपाई दो वाचिक गुरु लेकर ही रची गई है।

👉उत्तम लय के लिए हम चरणांत -दो वाचिक गुरु रखकर ही प्रयास करेंगे।

 👉किंतु एक वाचिक गुरु वाली रचना भी विधानसम्मत मानी जाती है। हालाँकि ऐसे सृजन बहुत कम हुए हैं। बस चौपाई के अंत में गाल (गुरु-लघु) वर्जित होता है।

विश्लेषण:-

वाचिक गुरु का अर्थ जो बोलने में गुरु जैसा लगे यानी दो लघु जिनका उच्चारण बोलते समय एक साथ किया जाता है।
जैसे- मधुकर (मधु-कर)- वाचिक गुरु-गुरु (यानी दो वाचिक गुरु )
    सागर (सा-गर)- गुरु-वाचिक गुरु (यानी दो वाचिक गुरु )
     कहना (कह-ना)- वाचिक गुरु-गुरु।(यानी दो वाचिक गुरु )

चौपाई रचते समय विशेष ध्यान रखें कल-क्रम का। यदि आप द्विकल से प्रारंभ करते हैं तो ठीक उसके बाद द्विकल ही आना चाहिए। 
त्रिकल से प्रारंभ है तो त्रिकल। चौकल से प्रारंभ है तब तो कोई बात ही नहीं।
*बस 👉सम-सम, विषम-विषम ध्यान रखें।*

प्रयास रहे पंचमात्रिक शब्द से प्रारंभ न हो। 

(द्विकल यानी दो मात्रिक शब्द। त्रिकल यानी तीन मात्रिक शब्द। कल यानी मात्रा।
सांकेतिक रूप में गुरु को गा तथा लघु को ल भी लिखा जाता है)

उदाहरण- तुलसीदास जी की एक चौपाई हनुमान चालीसा से-

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
कल-क्रम- जय 2 हनु2 मान3 ज्ञान3 गुन2 सा2 गर2। यहॉं गर वाचिक गुरु है।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
जय2 कपीस4 तिहुँ2 लोक2 उजा3गर2

रामदूत अतुलित बल धामा।
राम3 दूत3 अतुलित4 बल2 धामा4

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
अंजनि4 पुत्र3 पवन3सुत2नामा4।

उदाहरणस्वरूप एक मेरा प्रयास देखें।

बाजू-बल से जीनेवाला।
स्वेद-नीर को पीनेवाला।
रहता जाने क्यों हतभागी?
कोटि कर्म का फल बैरागी।

चिंदी चिथड़ी एक लँगोटी।
और उदर फाँके की रोटी।
एक अँगोछा लेकर काँधे।
शीश कभी तो कटि पर बाँधे।

एक और बात, छंद सृजन में भाषा की शुद्धता का ध्यान रखना भी अनिवार्य है। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि किसी भी शब्द के अंत में 'आ ' मात्रा का योग कर चौपाई का चरण बना दिया जाता है। हिंदी में इसे अच्छा नहीं माना जाता। हिंदी भाषा की प्रकृति अवधी एवं ब्रजभाषा से किंचित अलग है। अतः शब्द चयन हिंदी व्याकरण के अनुसार हो तो उत्तम।

विशेष - प्रत्येक 16 मात्रिक पंक्ति चौपाई नहीं होती। चौपाई के लिए प्रारंभिक 10 मात्राओं का क्रम में 3322 या 2233 का आना आवश्यक है। 
मंगल भवन अमंगल-- में 2233 है इसलिए यह चौपाई है।
पादाकुलक में चार-चार मात्राओं के चार समूह होते हैं।
पादाकुलक चौपाई नहीं होता।

-नवल किशोर सिंह
27.11.2022

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