गीत-सृजन : एक अवलोकन

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गीत
(गीत से हमारा अभिप्राय साहित्यिक गीत से है )

गीत काव्य की एक ऐसी विधा जिसके बारें में कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं। यह काव्य की सबसे प्राचीन व लोकप्रिय विधा है। चतुर्वेद में से एक, सामवेद की रचना का आधार गीत ही है। आज भी हम देखते हैं कि शादी-विवाह हो या पर्व-त्योहार या कि सिने जगत, सर्वत्र गीतों की गूँज सुनाई देती है। यदि हम कहें कि खेत-खलिहान से लेकर साहित्य-जगत तक गीतों का वर्चस्व है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

हर व्यक्ति के अंदर एक गीतकार छुपा होता है जो यदा-कदा ही सही किंतु गुनगुनाता अवश्य है। एक गुनगुनाहट जो अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति देती है। यही गीत का मूल ध्येय है। अर्थात, गीत वह काव्य है जिसे गाया जा सके। साथ ही, जिसके गायन व श्रवण से रसानंद की अनुभूति हो।

यद्यपि गीतों के भी अलग-अलग प्रकार हैं और विद्वानों के अलग-अलग मत है तथापि मेरा विचार यही है कि गीत वही सफल है जो सरस गेयता से परिपूर्ण हो। यदि गेयता बाधित हो गई तो गीत का आनंद भी खंडित हो जाता है। अतः गीत-रचना से पूर्व रचनाकार को भाव और शिल्प पर समुचित ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

गीत के लक्षण-

गीत मुखड़ा और अंतरा के योग से बनता है। प्रत्येक गीत में एक मुखड़ा और कम से कम तीन अंतरे होने चाहिए। 

1.मुखड़ा- इसमें एक से चार पंक्तियाँ होती जो प्रायः किसी समान लय में होती है। यह लय किसी सनातनी या लौकिक छंद या किसी मापनी या किसी स्वैच्छिक लय पर आधारित हो सकती है।

2. टेक- मुखड़े की एक पंक्ति जिसको अंतरे में जोड़कर गाई जाती है, टेक कहते हैं।

3. अंतरा- किसी भी गीत में मुखड़े के अतिरिक्त तीन या अधिक अंतरे होते हैं। प्रत्येक अंतरे में प्रायः तीन या अधिक लयात्मक पंक्तियाँ होती हैं। अंतरे की अंतिम पंक्ति जिसको पूरक पंक्ति कहते हैं तथा शेष को प्रारंभिक पंक्तियाँ कहते हैं। प्रारंभिक पंक्तियों का तुकांत स्वैच्छिक होता है। 

4. पूरक पंक्ति- अंतरे की अंतिम पंक्ति को पूरक पंक्ति कहते हैं, इसके साथ टेक को मिलाकर गाया जाता है। पूरक पंक्ति का तुकांत टेक से मिलता है। इसके लय एक समान या भिन्न भी हो सकते हैं लेकिन लय में निरंतरता अनिवार्य है।

5. लय- किसी भी गीत का मुखड़ा और अंतरा दोनों एक ही छंद या लय पर आधारित हो सकते हैं या मिश्रित छंद अर्थात मुखड़े में एक छंद और अंतरे में अलग छंद हो सकता है। लेकिन उनमें लय-साम्यता और निरंतरता होनी चाहिए। साथ ही जिस लय का निर्धारण एक अंतरे में हो चुका है उसका अनुपालन अन्य अंतरों में भी होना चाहिए।

उदाहरणार्थ-
मधुमालती छंद
(गागालगा गागालगा)
पर आधारित एक गीत देखें।

मुखड़ा -
जीवन सरस अभिसार से।
प्रियतम तुम्हारे प्यार से।....(टेक )

अंतरा -1
पाकर तुम्हारे हाथ को।
मकरंद मंडित साथ को।... (प्रारंभिक पंक्तियाँ )

मधुकर बना मन नाचता,
मधुवन पुलक गुंजार से।....(पूरक पंक्ति )

प्रियतम तुम्हारे प्यार से।....(टेक )


अंतरा -2
आनंद का सागर लिए।
रति-राग का गागर लिए।
भूखंड नीरस सींचती,
तुम नेह की रसधार से।....(पूरक पंक्ति )

टेक...

अंतरा -3
मधुहास हो सुखरास हो।
प्रिय साथ में मधुमास हो।
सज्जित रहें हम आयु भर,
संयोग के शृंगार से।....(पूरक पंक्ति )

टेक...

-©नवल किशोर सिंह
29.06.2022

1 टिप्पणी:

  1. गीत विधा समझाने के लिए धन्यवाद।सुंदर सहज और सरलीकरण से प्रस्तुत किया गया।🙏🙏

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