लंगट माट्साहेब (व्यंग्य)- श्री घनश्याम सहाय

www.sangamsavera.in 
संगम सवेरा वेब पत्रिका

लंगट माट्साहेब
------------




वैसे तो नाम लालशंकर सिंह है लेकिन लोग उन्हें प्यार से लंगट बुलाते हैं। लालशंकर सिंह कब लालशंकर सिंह से लंगट में बदल गए यह उन्हें भी पता नहीं चला।शायद लोगों को लालशंकर की अपेक्षा लंगट कहना ज्यादा आसान लगा हो।
             लंगट सरकारी विद्यालय में केमिस्ट्री के शिक्षक हैं।आज लंगट अपनी तीसरी घंटी में कक्षा दस में एस्टेरीफिकेशन पढ़ा रहे हैं---
बच्चों,एल्कोहलों के सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में कार्बनिक अम्लों की क्रिया से एस्टर के निर्माण की विधि को एस्टरीकरण कहते हैं।जब हम इथाइल एल्कोहल को सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में एसिटिक अम्ल में मिलाते हैं तो एस्टर बनता है।

  CH3COOH + C2H5OH → CH3COOC2H5 + H2O

           देखो,इस परखनली में इथाइल एल्कोहल लिया,अब इसमें कुछ बूंदें सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की डाला और इसके बाद हमने इसमें एसिटिक एसिड डाला।देखो,अब हम इस परखनली को हल्के गर्म पानी के टब में रख देते हैं। बच्चों महसूस करो,क्या हुआ?
बच्चे--सर!पूरा कमरा सुगंध से भर गया।
लंगट--जानते हो,इस सुगंध का कारण क्या है? इसका कारण है इथाइल एल्कोहल और एसिटिक एसिड की रासायनिक अभिक्रिया से उत्पन्न इथाईल एसिटेट अर्थात एस्टर।

तभी लंगट की नजर क्लास के पिछले बेंच पर बैठे दीपक पर पड़ी जिससे बगल में बैठा सुधीर कुछ कह कर हॅंसे जा रहा है।

लंगट ने नाराज होते हुए कहा-तुम लोग पढ़ने आते हो कि--क्या बात है दीपक?

दीपक--सर!यह सुधीर पढ़ने नहीं देता।

लंगट--कह क्या रहा है?

दीपक--सर!कह रहा है कि स्वच्छता अभियान के दौरान सरकार ने लंगट माट्साहेब की ड्यूटी खेतों में स्वच्छता के लिए लगाई थी। लंगट माट्साहेब रोज सुबह चार जागते और टार्च लिए खेतों की ओर निकल पड़ते।खेतों में शौच को बैठे लोगों पर टाॅर्च जलाते और शौच करते लोगों को खदेड़ते। सुबह-सुबह ख़ूब माॅं-बहन का भजन होता।शौच करते लोग लंगट माट्साहेब को भजन सुनाते और लंगट माट्साहेब उनके सुर में सुर मिलाते।

लंगट--और?

दीपक--और कह रहा था कि लग रहा है लंगट माट्साहेब लोगों द्वारा खेतों में बनाई गई रंगोली से उठ रहे एस्टर की सुगंध को सुंघ कर आए हैं इसीलिए आज क्लास में एस्टर पढ़ा रहे हैं।

दीपक के हर शब्द के साथ लंगट माट्साहेब का क्रोध परवान चढ़ रहा था। अंततः लंगट माट्साहेब लंगटई पर उतर आए। सुधीर को काॅलर से पकड़ कर अपनी ओर खींचा और फिर आरंभ हुआ लात-घूंसों का कार्यक्रम। सुधीर बाप-बाप चिल्लाए जा रहा था लेकिन लंगट माट्साहेब कहाॅं रूकने वाले थे उनपर तो उनके सर तो खेतों की रंगोली से उठ रही सुगन्धित एस्टर का नशा छाया हुआ था।
                                तभी चपरासी ने लंगट माट्साहेब को आवाज दी--माट्साहेबऽऽऽ,हेड्माट्साहेब याद कर रहे हैं।
सुधीर को ऐसा लगा जैसे चपरासी छगन उसके लिए देवदूत बनकर आया हो। सुधीर ने राहत की साॅंस ली।
                    हेड्माट्साहेब ने लंगट माट्साहेब के पहुॅॅंचते ही उनके सर पर बम फोड़ते हुए कहा--

लंगट माट्साहेब!डी०एम०साहेब आपके स्वच्छता अभियान वाले काम से बड़ी खुश हैं और डी०एम० साहेब चाहते हैं कि आप सरकार के शराबबंदी कार्यक्रम तहत गाॅंवों में जाकर यह पता करें कि गाॅंवों में कितने शराबी हैं।

लंगट माट्साहेब--हेड्माट्साहेब!आज तक तो मास्टर बकरा- बकरी, मुर्गा-मुर्गी, गाय-भैंस और आदमी का गिनती करता था,अब शराबियो गिनना पड़ेगा?

हेड्माट्साहेब--माट्साहेब! शराबियो आदमिए न होता है।

लंगट माट्साहेब--माने,

                   छोड़ के अपनी पाठशाला।
                   हम ढूॅंढत फिरें मधुशाला।।

----हेडमाट्साहेब!इ सरकार हम मास्टर को समझती का है? "जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स"? जब चाहा हलवाई बना दिया जब चाहा अलबेंडाॅजोल बटवा दिया,जब चाहा चावल-गेहूॅं का हिसाब करवा लिया और अब शराबी--?हेड्माट्साहेब!यह बताइए हम हैं कौन? मास्टर हैं या बहरूपिया हैं,हम हैं क्या?  हमारी पहचान क्या है?
       इसका माने तो यही हुआ कि पढ़ना-पढ़ाना छोड़ के हमें सब काम करना है। फ़रवरी का महीना है,यह बताइए कि हम अलबेंडाॅजोल बाॅंटें कि शराबी गिने? क्या करें हम?हेडमाट्साहेब!एक बात सोच लीजिएगा कहीं ऐसा न हो उधर हम शराबी गिनते रहें और इधर हमारे विद्यार्थी शराबियो की संख्या में इजाफा करते रहें। 

हेड्माट्साहेब--अरे लंगट माट्साहेब आप तो नाराज हो गए।यह मेरा आदेश थोड़े ही है,यह तो सरकारी आदेश है।

लंगट मास्टर--सर!जब शिक्षा व्यवस्था में राजनीति का हस्तक्षेप होता है न,तो उसका चौपट होना तय है।

हेडमास्टर--अब इसमें राजनीति कहाॅं से आ गई?यह तो सरकारी आदेश है।

लंगट मास्टर--राजनीति कहाॅं से आ गई?हेड्माट्साहेब!इस देश में बिना राजनीति के भी सरकारें बना करती हैं क्या?
चलिए ये बताइए कि केमिस्ट्री पढ़ायें,अलबेंडाॅजोल बाटें या शराबी गिननें जायें। हमारे सरकार तो आप ही हैं न।

हेड्माट्साहब के पास लंगट माट्साहब का कोई जबाब नहीं था फिर भी उन्होंने तत्काल में आए सरकारी आदेश का पालन करने का आदेश दिया। लंगट माट्साहब हृदय में क्षोभ भरे गाॅंव-गाॅंव शराबियों की गिनती करने निकल पड़े।
                            साथ चल रही माहटराइन रीता देवी ने लंगट माट्साहेब से पूछा--कहाॅं चले लंगट माट्साहेब?

लंगट माट्साहेब--सरकारी काम है?--और फिर लंगट
माट्साहेब ने जोर से कहा---

        "जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स बट मास्टर ऑफ नन"।

कमोबेश आजकल हर मास्टरमाइंड मास्टर की यही दशा है।उधर सुधीरवा लंगट माट्साहेब के स्वच्छता अभियान दौरान खेतों की रंगोली से उठ रहे सुगंधित "एस्टर" पर शोध कर रहा है।




  -घनश्याम सहाय
डुमराॅव,बक्सर,बिहार

★★■★★

कोई टिप्पणी नहीं

©संगम सवेरा पत्रिका. Blogger द्वारा संचालित.